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________________ अधिक स्वतन्त्र कथात्मक रचनाएँ उपलब्ध हैं।"10 कथा-काव्य एक प्रकार से पद्यबद्ध उपन्यास है । "वस्तुत: आज के कथा-साहित्य (उपन्यास और कहानी) का विकास इन्ही काव्यरूपों से हुआ है।" रासो अथवा रासक - इस काव्य-रूप का मूल स्रोत लोक गेय नृत्य ही प्रतीत होता है। यह काव्य-रूप अत्यन्त लोकप्रिय रहा है। इसकी परम्परा अपभ्रंश भाषा से ही प्रारम्भ हुई है। "इस काव्य-रूप में विषय-वस्तु, रस और शैली आदि का कोई प्रतिबंध नहीं रहा। इसके विषय कहीं धार्मिक एवं आध्यात्मिक हैं, तो कहीं लौकिक। रस कहीं शान्त है तो कहीं शृंगार। कहीं वीर है तो कहीं वीर-शृंगार मिश्रित । कथानक भी धार्मिक, पौराणिक, ऐतिहासिक और काल्पनिक सभी प्रकार के हैं । छन्दों की दृष्टि से भी कोई रचना बहुत ही कम छन्दों की है तो कोई अधिक छन्दों की है। यथा संदेशरासक' और 'वीसलदेव रास' शुद्ध लौकिक प्रेमभावापन्न संयोग और वियोग शृंगार के काव्य हैं, वहीं शालिभद्र सूरि का 'भरतेश्वर बाहुबलिरास' शुद्ध वीररस प्रधान रास है। चन्दवरदायी के 'पृथ्वीराज रासो' में वीर और शृंगार का मिश्रित रूप दिखाई पड़ता है।'12 डॉ. देवेन्द्रकुमार शास्त्री ने रास साहित्य की एक लम्बी सूची दी है जो महत्वपूर्ण है। ___फाग या फागु-'फागु' शब्द फाल्गुन महीने से जुड़ा है। यह बसन्त ऋतु का काव्य है । फाल्गुन महीने में फाग रचना गाई जाती है। रासक की भाँति इसका मूल स्रोत बसन्त ऋतु में गाये जानेवाले लोकगीत हैं। 14वीं शती का 'थूलिभद्द फागु' इस परम्परा की सर्वप्रथम कृति है । फागु-काव्य का विकास रासक-काव्य के समान नृत्य-गीतपरक रहा है। डॉ. त्रिलोकीनाथ 'प्रेमी' के विश्लेषण के अनुसार – “फागु-काव्यों के तीन रूप दर्शनीय हैं – एक, जैन मुनियों द्वारा रचे गये फागु-काव्य, जिनमें बसंतश्री की आधारभूमि पर लौकिक शृंगार की पराकाष्ठा अंत में निर्वेद में बदल जाती है; दूसरे, जैनेतर कवियों द्वारा रचे गये फागु-काव्य, जिनमें प्रकृति के उद्दीप्त परिवेश में लोक-शृंगार की व्यंजना बड़ी मधुर और मार्मिक बन पड़ी है; एवं तीसरे, कृष्णभक्त वैष्णव कवियों द्वारा रचे गये बसंत तथा फागु संबंधी पद जो आध्यात्मिक मधुर रस से परिपूर्ण हैं । फागुकाव्यों के ये तीनों प्रकार लौकिक-श्रृंगार की पृष्ठभूमि पर टिके होने पर भी उद्देश्य और अंत की दृष्टि से परस्पर भिन्न हैं । एक वैराग्योन्मुख करता है तो अपभ्रंश और हिन्दी 47 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002700
Book TitleApbhramsa Ek Parichaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2000
Total Pages68
LanguageApbhramsa, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size3 MB
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