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________________ (5) अपभ्रंश साहित्य में प्रगतिशीलता की प्रवृत्ति का जो रूप मिलता है वह परवर्ती साहित्य को प्रेरणा दे सकता है। स्वयंभू और पुष्पदंत ने नारियों के प्रति पूर्ण सम्मान प्रदर्शित किया है । अपभ्रंश के रहस्यवादी कवियों ने तथा सिद्धों ने पाखण्ड का खण्डन, जाति-पाँति की भावना का तिरस्कार, मंदिर-मठ आदि की व्यर्थता बताने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। काव्यरूप - अपभ्रंश साहित्य में अनेक प्रकार के काव्यरूप मिलते हैं । इन अनेक काव्यरूपों का विकास हिन्दी साहित्य में भी दिखाई पड़ता है। चरिउ - चरिउ (चरित्र) अपभ्रंश का सर्वाधिक लोकप्रिय काव्यरूप रहा है। इन चरित्र-काव्यों में अधिकतर त्रेसठ शलाका पुरुषों का जीवन-चरित्र वर्णित है। स्वयंभू का पउमचरिउ और रिट्ठणेमिचरिउ, पुष्पदंत का णायकुमारचरिउ और जसहरचरिउ श्रेष्ठ चरित्र-काव्य हैं। अन्य चरित्र काव्य हैं - वीर कवि का जंबुसामिचरिउ, नयनंदी का सुदंसणचरिउ, मुनि कनकामर का करकंडचरिउ, धाहिल कवि का पउमसिरीचरिउ, श्रीधर के पासणाहचरिउ, सुकमालचरिउ और भविसयत्तचरिउ नामक तीन ग्रन्थ हैं; देवसेनगणि का सुलोचनाचरिउ, हरिभद्र का नेमिनाथचरित्र, पण्डित लक्खण कवि का जिनदत्तचरिउ, रइधू का सुकौशलचरिउ उल्लेखनीय हैं । तुलसीदास का रामचरित्रमानस और केशवदास का वीरसिंह देवचरित्र ऐसे ही चरित्र-काव्य हैं जिसमें चरिउ-परम्परा के दर्शन होते हैं।' हजारीप्रसाद द्विवेदी के अनुसार - "इन चरित्र-काव्यों के अध्ययन से परवर्ती काल के हिन्दी साहित्य के कथानकों, कथानक-रूढ़ियों, काव्यरूपों, कविप्रसिद्धियों, छन्दोयोजना, वर्णनशैली, वस्तुविन्यास, कवि-कौशल आदि की कहानी बहुत स्पष्ट हो जाती है । इसलिए इन काव्यों से हिन्दी साहित्य के विकास के अध्ययन में बहुत महत्वपूर्ण सहायता प्राप्त होती है।'' कहा-काव्यरूप - कहा-काव्यरूप अपभ्रंश का महत्वपूर्ण काव्यरूप है। "कथा-काव्य का नायक आदर्श पुरुष ही नहीं; राजा, राजकुमार, बनिया, राजपूत आदि कोई भी साधारण पुरुष अपने पुरुषार्थ से अग्रसर हो अपने व्यक्तित्व तथा गुणों को प्रकट कर यशस्वी परिलक्षित होता है।'' "कथा-काव्यों में एक विशेष प्रवृत्ति यह है कि वे धार्मिक तत्वों से भरित नहीं है। उनमें लोकजीवन का उन्मुक्त प्रकाश है। धनपाल की भविसयत्तकहा कथा-काव्य का केन्द्रीय ग्रंथ है। अपभ्रंश का कथा-साहित्य विपुल मात्रा में मिलता है। "लगभग एक सौ से भी अपभ्रंश : एक परिचय 46 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002700
Book TitleApbhramsa Ek Parichaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2000
Total Pages68
LanguageApbhramsa, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size3 MB
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