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________________ यह कहना अतिशयोक्ति नहीं है कि अपभ्रंश भाषा और साहित्य का ही विकसित रूप हिन्दी है। डॉ. हजारीप्रसाद द्विवेदी के अनुसार- "साहित्यिक परम्परा की दृष्टि से विचार किया जाय तो अपभ्रंश के प्रायः सभी काव्यरूपों की परम्परा हिन्दी में ही सुरक्षित है।'' डॉ. सकलदेव शर्मा लिखते हैं- "हिन्दी काव्य का विषय ही नहीं, उसकी रचना शैली और छन्दों पर भी अपभ्रंश साहित्य का प्रभाव है। अलंकारों के लिए भी हिन्दी अपभ्रंश की ऋणी है। ध्वन्यात्मक शब्दों का प्रयोग भी हिन्दी में अपभ्रंश से आया। अपभ्रंश की अनेक लोकोक्तियों, मुहावरों और कथानक रूढियों को भी हिन्दी ने सहर्ष अपना लिया है। इस तरह भावपक्ष और कलापक्ष दोनों ही दृष्टियों से हिन्दी साहित्य अपभ्रंश साहित्य से प्रभावित है।''3. __ अपभ्रंश की पृष्ठभूमि में हिन्दी साहित्य के चार कालों -(1) आदिकाल (7वीं से 14वीं शती), (2) भक्तिकाल (14वीं से 17वीं शती), (3) रीतिकाल (शृंगार काल) (17वीं से 18वीं शती) और (4) आधुनिक काल (18वीं से...) की प्रवृत्तियों को समझने का प्रयास करेंगे। विद्वानों ने आदिकाल का समय 10वीं शती से 14वीं शती तक स्वीकार किया है। जो साहित्य आदिकाल में संगृहीत है वह परवर्ती अपभ्रंश का है। इसकी चर्चा पूर्व में की जा चुकी है। मेरे विचार से भाषा के दृष्टिकोण से यह काल परवर्ती अपभ्रंश का काल है । यह साहित्य परिनिष्ठित अपभ्रंश से प्रेरणा ग्रहण करता हुआ आगे बढ़ गया। दूसरे शब्दों में "10वीं से 14वीं शताब्दी के समय में लोक-भाषा में लिखित जो साहित्य उपलब्ध हुआ है उसमें परिनिष्ठित अपभ्रंश से कुछ आगे बढ़ी हुई भाषा का रूप दिखाई देता है । 10वीं शताब्दी की भाषा के गद्य में तत्सम शब्दों का व्यवहार बढ़ने लगा था परन्तु पद्य की भाषा में तद्भव शब्दों का ही एकछत्र राज था।" 14वीं शताब्दी तक के साहित्य में इसी प्रवृत्ति की प्रधानता मिलती है। यह परवर्ती अपभ्रंश का साहित्य आदिकालीन साहित्य है। विद्वानों द्वारा देवसेन कृत सावयधम्म दोहा (10वीं शती) आदिकालीन हिन्दी का सर्वप्रथम ग्रन्थ स्वीकार किया गया है। हिन्दी साहित्य की निम्नलिखित प्रवृत्तियाँ अपभ्रंश साहित्य में देखी जा सकती हैं- (1) प्रेम और श्रृंगार की प्रवृत्ति, (2) वीरता और शौर्य की प्रवृत्ति, (3) धर्म, नीति तथा उपदेशमूलक प्रवृत्तियाँ, (4) अध्यात्म, भक्ति और गुरु के अपभ्रंश : एक परिचय www.jainelibrary.org 44 Jain Education International For Private & Personal Use Only
SR No.002700
Book TitleApbhramsa Ek Parichaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2000
Total Pages68
LanguageApbhramsa, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size3 MB
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