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कीर्तिलता की भाषा परवर्ती अपभ्रंश है। इसमें मैथिली का प्रभाव स्पष्ट दिखाई देता है । अरबी-फारसी के शब्दों का, तत्सम तद्भव व देशज शब्दों का प्रयोग भी इसमें मिलता है। काव्य में स्थान-स्थान पर गद्य का प्रयोग भी देखा जा सकता है । इस दृष्टि से इसे चम्पू-काव्य भी कह दिया जाता है । इस काव्य में मात्रिक व वर्णिक दोनों प्रकार के छन्दों का प्रयोग हुआ है। __(6) पृथ्वीराज रासो - चन्दबरदाई द्वारा रचित 'पृथ्वीराज रासो' परवर्ती अपभ्रंश का उत्कृष्ट काव्य है। यह राजस्थान का महत्वपूर्ण लोकप्रिय काव्य रहा है। डॉ. हजारीप्रसाद द्विवेदी पृथ्वीराज रासो को प्रेमकाव्य ही मानते हैं। राससाहित्य की परम्परा अपभ्रंश काल से लेकर 18वीं-19वीं शती तक चलती रही। कुछ उल्लेखनीय रासो ग्रन्थ हैं - शालिभद्रसूरि का भरतेश्वर बाहुबलिरास (12वीं शती) 203 पद्यों में निर्मित है; आसुग कवि की दो रचनाएँ - जीवदया रास व चन्दनबाला रास (12वीं शती); धर्मसूरि का जम्बूस्वामी रास; देल्हणि का गयसुकुमाल रास (13वीं शती); नरपति नाल्ह का बीसलदेव रास (14वीं शती); जल्ह कवि का बुद्धि रास (14वीं शती) आदि अनेक रासो ग्रन्थ प्राप्त होते हैं । इन सबमें पृथ्वीराज रासो उत्कृष्ट काव्य है। इसमें चन्दबरदाई ने अपने आश्रयदाता पृथ्वीराज चौहान के शौर्य, शृंगार व प्रेम की कथा वर्णित की है। रासो के तीन विवाह-प्रसंगों - इंछिनी का, शशिव्रता का और संयोगिता का - में से विद्वानों की दृष्टि में शशिवता-विवाह प्रसंग काव्यात्मक दृष्टि से पृथ्वीराज रासो का उत्कृष्ट प्रसंग है । शृंगार और वीर रस इस काव्य में प्रधान हैं। वैसे शृंगार रस रसों का राजा माना गया है पर भवभूति ने करुण रस को भी यह स्थान प्रदान किया है। __ करुण रस का चित्रण चन्दबरदाई बड़ी मार्मिकता से करते हैं - "क्या विचित्र विडम्बना है कि जिस पृथ्वीराज ने मुहम्मद गौरी को कई बार परास्त कर छोड़ दिया था उसे एक बार भी छोड़ने का मौका गौरी ने नहीं दिया। वह गजनी के लोहे के शिकंजों में बंद है, वह भी अंधा बनाकर। बीते दिनों के सुख और वैभव की याद में दुःख की काली छाया और गहरी हो जाती है। आज वह अपने सूरसामंतों, परिवार और देश से दूर है। घोड़ों, हाथियों और भण्डारों का राजा दीन हो गया है। प्राण से भी प्यारी संयोगिता, सुन्दरियों से चित्रित चित्रसारी नहीं है और विरुद बखाननेवाला कवि चन्द भी उससे दूर है। आज दान देने के लिए हाथ में फूटी कौड़ी तक उसके पास नहीं है।"
परवर्ती अपभ्रंश
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