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________________ (3) नेमीनाथ चउपई - यह गुजरात के विनयचन्द्र सूरि द्वारा 40 पद्यों में रचित एक छोटी रचना है जिसमें राजुल के विरह का वर्णन है । राजुल का विवाह नेमिनाथ से होने जा रहा था किन्तु वहाँ मांस-भोजन के निमित्त मारे जानेवाले पशुओं की चीत्कार सुनकर नेमिनाथ को वैराग्य हो गया। राजुल विरह में जलने लगी। "कवि ने बारहमासे के माध्यम से उसके विरह का बड़ा मर्मस्पर्शी चित्रण किया है। बारहमासे के माध्यम से विरहवर्णन की परम्परा सर्वप्रथम यही परिलक्षित होती है, जिसका अच्छा विकास 'बीसलदेवरासो' और जायसी के 'पद्मावत' में दिखाई पड़ता है। नेमिनाथ चउपई' का बारहमासा वर्णन 'श्रावण' से शुरू होता है।'' काव्य में चौपाई छन्द का प्रयोग हुआ है। (4) उक्तिव्यक्तिप्रकरण - काशी के दामोदर पण्डित द्वारा रचित उक्तिव्यक्तिप्रकरण मध्यदेशीय अपभ्रंश की एकमात्र उपलब्ध कृति है। इससे पश्चिमी और पूर्वी अपभ्रंश के बीच मध्यदेश की अपभ्रंश के स्वरूप का ज्ञान होता है। पाँच प्रकरणों में गुम्फित यह एक व्याकरण ग्रन्थ है। उक्ति का अर्थ है - 'सामान्य जन की भाषा'। मुनि जिनविजयजी ने लिखा है - "उक्ति शब्द का अर्थ है लोकोक्ति अर्थात् लोक-व्यवहार में प्रयुक्त भाषा-पद्धति जिसे हम हिन्दी में 'बोली' कह सकते हैं। लोकभाषात्मक उक्ति की जो व्यक्ति अर्थात् व्यक्तता - स्पष्टीकरण करे - वह है उक्तिव्यक्ति शास्त्र।" मध्यदेश का आधुनिक प्रतिनिधि उत्तरप्रदेश है । डॉ. वर्मा के अनुसार इसमें पाँच प्रधान महाजन पदों का संघ मिला हुआ है, वे ये हैं - कुरु जनपद (खड़ी बोली प्रदेश), पांचाल जनपद (कन्नौजी प्रदेश), शूरसेन जनपद (ब्रजभाषा प्रदेश), कौशल जनपद (अवधी प्रदेश) तथा काशी जनपद (भोजपुरी प्रदेश) । खड़ी बोली प्रदेश - खड़ी बोली का उद्भव शौरसेनी अपभ्रंश के उत्तरी रूप से हुआ है तथा इसका क्षेत्र देहरादून का मैदानी भाग, सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, मेरठ, दिल्ली का कुछ भाग, बिजनौर, रामपुर तथा मुरादाबाद है। परवर्ती अपभ्रंश 35 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002700
Book TitleApbhramsa Ek Parichaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2000
Total Pages68
LanguageApbhramsa, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size3 MB
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