________________
पृ. 3,
60. सुदंसणचरिउ का साहित्यिक मूल्यांकन, डॉ. आदित्य प्रचण्डिया 'दीति', जैनविद्या, अंक- 7, मुनि नयनन्दी विशेषांक, जैनविद्या संस्थान, श्रीमहावीरजी । 61. सुदंसणचरिउ : उदात्त की दृष्टि से, डॉ. गदाधरसिंह, पृ. 64, जैनविद्या, अंक- 7, मुनि नयनन्दी विशेषांक, जैनविद्या संस्थान, श्रीमहावीरजी ।
62. वही, पृ.65
63. सुदंसणचरिउ में अलंकार-योजना, डॉ. गंगाराम गर्ग, पृ. 17, जैनविद्या, अंक-7, मुनि नयनन्दी विशेषांक, जैनविद्या संस्थान, श्रीमहावीरजी ।
64. सुदंसणचरिउ का काव्यात्मक वैभव, डॉ. देवेन्द्रकुमार शास्त्री, पृ. 15,
जैनविद्या, अंक- 7, मुनि नयनन्दी विशेषांक, जैनविद्या संस्थान, श्रीमहावीरजी । 65. मुनि कनकामर - व्यक्तित्व और कृतित्व, डॉ. (श्रीमती) अलका प्रचण्डिया 'दीति', पृ. 3, जैनविद्या, अंक- 8, कनकामर विशेषांक, जैनविद्या संस्थान, श्रीमहावीरजी । 66. हिन्दी के विकास में अपभ्रंश का योग, डॉ. नामवरसिंह, पृ. 215,
लोक भारती प्रकाशन, इलाहाबाद ।
67. मुनि कनकामर - व्यक्तित्व और कृतित्व, डॉ. (श्रीमती) अलका प्रचण्डिया 'दीति', पृ. 5, जैनविद्या, अंक- 8, कनकामर विशेषांक, जैनविद्या संस्थान, श्रीमहावीरजी । 68. करकंडचरिउ में कथानक रूढ़ियाँ, डॉ. त्रिलोकीनाथ 'प्रेमी', पृ. 54,
अपभ्रंश भारती, अंक 9-10, अपभ्रंश साहित्य अकादमी, जयपुर ।
69. वही, पृ. 55, 63, 64
70. अपभ्रंश और अवहट्ट : एक अन्तर्यात्रा, डॉ. शम्भूनाथ पाण्डेय, पृ. 87, 1979, चौखम्भा ओरियन्टालिया, वाराणसी ।
-
71. वही, पृ. 88
72. अपभ्रंश भाषा साहित्य की शोधप्रवृत्तियाँ, डॉ. देवेन्द्रकुमार शास्त्री, पृ. 73, 1996, भारतीय ज्ञानपीठ, नई दिल्ली।
73. मयणपराजयचरिउ, हरिदेव, सम्पादक : डॉ. हीरालाल जैन, प्रस्तावना, पृ. 62, 1962, भारतीय ज्ञानपीठ, नई दिल्ली।
74. अपभ्रंश साहित्य, प्रो. हरिवंश कोछड़, पृ. 338, 1957, भारती साहित्य मन्दिर,
दिल्ली ।
75. मयणपराजयचरिउ, हरिदेव, सम्पादक, डॉ. हीरालाल जैन,
30
पृ. 78, 79, 80, 1962, भारतीय ज्ञानपीठ, नई दिल्ली।
79. वही, पृ. 7
76. वही, पृ. 74
77. वही, पृ. 73
78. रइधू ग्रन्थावली, भाग 1, सम्पादक : डॉ. राजाराम जैन, भूमिका, पृ. 10, 1975,
जैन संस्कृति संरक्षक संघ, सोलापुर ।
Jain Education International
प्रस्तावना,
For Private & Personal Use Only
अपभ्रंश : एक परिचय
www.jainelibrary.org