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________________ अपभ्रंश के जैन साहित्य का जो परिचय यहाँ प्रस्तुत किया गया है वह अपूर्ण है। अधिकांश साहित्य ग्रन्थ-भण्डारों में पड़ा हुआ सम्पादन, अध्ययन व प्रकाशन की बाट जोह रहा है । उस साहित्य को प्रकाश में लाने का कार्य सामान्यरूप से भारतीय विद्वानों का और विशेषरूप से जैन विद्वानों का है । इस साहित्य को प्रकाश में लाना सांस्कृतिक मूल्यों की रक्षा के लिए आवश्यक है । प्रान्तीय भाषाओं और राष्ट्र भाषा के संदर्भ में अपभ्रंश साहित्य का महत्व समझना राष्ट्रहित में है । 2. बौद्धों की अपभ्रंश रचनाएँ बौद्धों की अपभ्रंश रचनाएँ मुक्तक काव्य की कोटि में आती हैं। इन रचनाओं के कर्ता बौद्ध सिद्ध हैं जिनके द्वारा रचित अनेक दोहे और गीत मिलते हैं । सिद्धों के अनेक दोहों और गीतों का संग्रह राहुलजी ने 'हिंदी काव्यधारा' में दिया है। इनकी रचनाएँ दो रूपों में मिलती हैं - (1) धर्म के सिद्धान्तों का प्रतिपादन और (2) कर्मकाण्ड का खण्डन । यहाँ यह ध्यान देने योग्य है कि सिद्धों का आविर्भाव जिस भूमिका में हुआ उसके कारण बौद्ध-साधना के नये आयाम प्रकट हुए। इसको निम्न प्रकार से समझा जा सकता है 1 बौद्धधर्म हीनयान और महायान इन दो धाराओं में विभक्त हो गया । हीनयान और महायान में एक मुख्य भेद निर्वाण के स्वरूप के विषय में है । महायानी नागार्जुन ने इसे (निर्वाण को) 'शून्य' कहा और लोक-मंगल के लिए चित्तवृत्ति को पाना 'बोधिचित्त' कहा गया । शून्य के सूक्ष्म विचार को समझना कठिन था । धर्मगुरुओं ने शून्य के लिए 'निरात्मा' शब्द का आविष्कार किया । बोधिचित्त इसी निरात्मा में लीन होकर महासुख में डूबा रहता है। निरात्मा शब्द स्त्रीलिंग है अतः निरात्मा देवी मानी गई है । उसी के आलिंगन में बोधिचित्त लीन रहता है । इस प्रकार महासुखवाद के परिणामस्वरूप महायान से वज्रयान की उत्पत्ति हुई । धीरेधीरे वज्रयान की इस धारा में अनाचार व्याप्त हो गया। इसमें से ही एक शाखा 'सहजयान' के नाम से प्रसिद्ध हुई, जो इस शाखा के साधक हुए वे 'सिद्ध' कहलाये । सहजयान के अनुसार चित्त-शुद्धि से सहजावस्था प्राप्त होती है और यही 'सहज' हमारा परम लक्ष्य है । 2 सिद्ध चौरासी कहे गये हैं । उनमें से सरहपा व कण्हपा मुख्य हैं। सरहपा व कण्हपा के दोहा-कोष तथा गीत उपलब्ध हैं । अपभ्रंश : उसके कवि और काव्य Jain Education International - For Private & Personal Use Only 23 www.jainelibrary.org
SR No.002700
Book TitleApbhramsa Ek Parichaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2000
Total Pages68
LanguageApbhramsa, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size3 MB
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