SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 16
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ द्वितीय बार सन् 1913-14 ई. में अहमदाबाद में एक जैन साधु के पास रखी हुई एक प्राचीन हस्तलिखित ग्रन्थ की प्रति देखी। उनको बताया गया कि यह कोई प्राकृत की रचना है। जेकोबी महोदय ने उसे उलट-पलटकर देखा और उस ग्रंथ की दो-चार पंक्तियों को ध्यान से पढ़ा। ग्रंथ पढ़ते ही जेकोबी अत्यन्त चमत्कृत हुए और हर्ष से उछल पड़े। तुरन्त ही उनके मुख से जो शब्द निकल पड़े उनका भाव था - "अरे ! यह तो कोई अपभ्रंश रचना लग रही है।"14 साधु जेकोबी को उस ग्रन्थ को देने के लिए तैयार नहीं थे। अतएव डॉ. जेकोबी कई दिनों तक लगातार बैठकर उसकी नकल करते रहे और बाद में बचे हुए पत्रों की फोटो-कापी तैयार करवाई। यह काव्यग्रंथ अपभ्रंश भाषा के महाकवि धनपाल का लिखा हुआ 'भविसयत्तकहा' था। अपभ्रंश साहित्य का यह महत्वपूर्ण काव्य डॉ. जेकोबी को सबसे पहले प्राप्त हुआ। कुछ दिनों के बाद सौराष्ट्र के प्रवास में उन्हें एक दूसरा काव्यग्रन्थ उपलब्ध हुआ। वह भी राजकोट के एक साधु के पास से प्राप्त हुआ था। इस ग्रन्थ का नाम 'नेमिनाथचरित' था। इसकी पूर्ण हस्तलिखित प्रति ही जर्मन विद्वान को मिल गई थी। इस प्रकार अपभ्रंश ग्रन्थों की पहली जानकारी डॉ. जेकोबी को प्राप्त हुई थी। - सन् 1918 ई. में म्यूनिक रायल एकेडमी से 'भविसयत्तकहा' का प्रथम संस्करण प्रकाशित हुआ जो व्याकरण, शब्द-रचना, शब्दकोष आदि से भलीभाँति अलंकृत था। अपभ्रंश का सर्वप्रथम प्रकाशित होनेवाला यही साहित्यिक ग्रन्थ था। इसके प्रकाशित होने के तीन वर्षों के पश्चात् सन् 1921 में डॉ. जेकोबी ने आचार्य हरिभद्रसूरि विरचित 'नेमिनाथचरित' के अंतर्गत 'सनत्कुमारचरित' का सुसम्पादित संस्करण प्रकाशित किया। सन् 1923 में भारतवर्ष में प्रथम बार गायकवाड़ ओरियण्टल सिरीज बड़ौदा से सी.डी. दलाल और पी.डी. गुणे के द्वारा सुसम्पादित 'भविष्यदत्तकथा' का प्रकाशन किया गया। उसके बाद अनेक अपभ्रंश ग्रन्थों का पता लगता गया। भारतीय विद्वान जिन ग्रन्थों को प्राकृत भाषा का समझते रहे, उनमें से कई ग्रन्थ अपभ्रंश के निकले। अपभ्रंश साहित्य की खोज के बाद अपभ्रंश साहित्य का सम्पादनकाल आरम्भ हो जाता है । डॉ. पी.एल. वैद्य, श्री राहुल सांकृत्यायन, मुनि जिनविजय, डॉ. हीरालाल जैन, डॉ. आदिनाथ नेमिनाथ उपाध्ये आदि विद्वानों ने अपभ्रंश ग्रन्थों के सम्पादन का कार्य प्रारम्भ किया। अपभ्रंश : उसके कवि और काव्य 5 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002700
Book TitleApbhramsa Ek Parichaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2000
Total Pages68
LanguageApbhramsa, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy