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संकलित वाक्य-प्रयोग
1. जहि-महुयर-पन्तिउ सुन्दराउ । केयइ-केसर-रय-धूसराउ । (1.4 प.च.)
-जहाँ केतकी के पराग-रज के समान हल्के पीले रंगवाली मधुकरों की - सुन्दर पंक्तियां (थीं)।
पंति (स्त्री.), सुन्दर-सुन्दरा (वि.),
धूसर →धूसरा (वि.) 2. जहि गन्दणवरणई मरणोहराई। णच्चन्ति व चल-पल्लव-कराई। (1.4प.च.) __ - जहाँ सुन्दर नन्दनवन (थे), मानो चंचल पत्तोंरूपी हाथ नाचते हों।
णन्दणवण (नपु.),
मणोहर (वि.) 3. थिर कित्ति विढप्पइ । (1.2 प.च.) -स्थिर कीति प्राप्त करता है ।
कित्ति (स्त्री.),
थिर-थिरा (वि.) 4. चरणोवरि दिदि विसाला। (2.2 प.च.) -चरणों के ऊपर विशास दृष्टि (डाली)।
दिदि (स्त्री)
विसाल→विसाला (वि.) 5. पई विणु सुग्णउ मोक्खु । (2.10 प.व.) -तुम्हारे बिना मोक्ष सूना है।
मोक्ख (पु.),
सुण्ण (वि.) 6. अण्णहुँ दिण्णउ उत्तिम वेसउ । (2.14 प.च.) --अन्य के लिए उत्तम वेश दिए गए।
वैस (पु.), उत्तिम (वि.)
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प्रौढ अपभ्रंश रचना सौरम
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