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________________ संकलित वाक्य प्रयोग ( ग ) ( 1 ) 1. तो म्हारउ खन्धावारु सब्बु दलवट्टइ । (77.15 प.च.) --तो ( वह हमारी सभी छावनी को नष्ट कर देग! ! 2. एय महारा दीव विचित्ता । (6.4 प.च.) - ये मेरे विचित्र द्वीप हैं । 3. सुन्दरि करहि महारउ वुत्तउ । (42.6 प.च.) - हे सुन्दरी (तुम) हमारा / मेरा कहा हुआ करो । 4. तो वयणु महारउ सुिरिण मित्त । (43.9 प.च.) - तो हे मित्र । (तुम) मेरे वचन सुनो । 5. एहु पुत्ति तुहारउ भत्तारु । ( 9.1 प.च.) - हे पुत्री । यह तुम्हारा पति है । 6 जं खेत्ते तुहारए किउ णिवासु । (4.13 प.च.) -- ( उसके द्वारा) तुम्हारो भूमि पर निवास किया गया है । 7. जं दिट्ठ तुहारा वे वि पाय । (40.4 प.च.) - तुम्हारे दोनों चरण देखे गए । 8. तुम्हारउ वण-वसणु रिएप्पिणु । किउ मई पट्टणु माउ घरेप्पिणु । (28.7 प. च.) - तुम्हारे वनवास को जानकर और भाव धारण करके मेरे द्वारा नगर बनाया गया । 9. हउं किपि तुहारउ किरण- सण्डु । (46.11 प.च.) - मै तुम्हारा ( प्रापका ) थोड़ा सा किरण-समूह ( हूँ ) | ( 2 ) 1. कि बहुएं एत्तिउ कहिउ मई । ( 12.7 प च . ) - बहुत ( बात ) से क्या ? मेरे द्वारा इतना कहा गया ( है ) । 2. इय एत्तिय पहु पठवइय तेत्थु । (30.10 प.च.) *** - इस प्रकार इतने राजा वहां प्रव्रजित हुए ! प्रौढ अपभ्रंश रचना सौरम ] Jain Education International For Private & Personal Use Only ( 77 www.jainelibrary.org
SR No.002695
Book TitlePraudh Apbhramsa Rachna Saurabh Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1997
Total Pages202
LanguageApbhramsa, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size5 MB
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