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पाठ 8
अभ्यास
(1) दोनों आकाश में घूमते हैं। (2) जो चारों युद्ध जीत लेगा, उसको तुम वीर जानो । (3) पांचों के द्वारा बार-बार शरीर अलंकृत किया जाता है । (4) आठों छात्रों में से एक इस ग्रन्थ को पढ़ता है । (5) तुम्हारे द्वारा चौबीसों तीर्थंकरों को प्रणाम किया जाना चाहिए। (6) उसकी सम्पत्ति मेरी सम्पत्ति से दुगुनी है । (7) मेरे पास उससे तिगुनी पुस्तकें हैं । (8) सोलह वस्तुएं पाठ वस्तुओं से दुगुनी कही जाती हैं । (9) इस नगर में चालीस गुने अधिक लोग बसते हैं । (10) हनुमान ने चारों उद्यानरक्षकों को मार दिया । (11) दोनों सेनाएं आपस में टकरा गईं। (12) वहां कोई भी नहीं था, जो उन धनुषों को चढ़ा लेता। (13) कोई भी नारी जो उस दर्पण को देखती है, वह प्रसन्न होती है। (14) गुरु उसको कुछ ज्ञान देता है। (15) किसी के द्वारा किसी के ऊपर रण में चक्र छोड़ा गया । (16)किसी पर तुम प्रसन्न होते हो,किन्तु किसी पर तुम क्रुद्ध भी होते हो । (17) दूसरों के लिए विविध प्रकार की विद्याएं सिखाई गईं। (18) एक का मुख खिला हुआ था, दूसरे का मुख खिन्न था। (19) एक रथ पर महीधर प्रारूढ हुआ, दूसरे रथ पर पाठों कुमार चढ़े । (20) तुम एक दूसरे की निन्दा मत करो । (21) इस कक्षा का प्रत्येक छात्र एक दूसरे के लिए स्नेहपूर्वक बोलता है। (22) किसी नगर में एक राजा रहता था। (23) थोड़े फल लायो। (24) तुम बहुत रत्न क्यों खरीदते हो ? (25) कई मनुष्य भोजन जीमते हैं । (26) हंसते हुए कुछ लोग गांव जाते हैं।
शब्दार्थ
(1) परिभमन्ति=घूमना; णह-मण्डल =प्राकाश (3) भूस=प्रलंकृत करना (10) उज्जाणवाल= उद्यानरक्षक (12) धणु (पुन)=धनुष; चडाव=चढाना (13) जोय=देखना (15) मुक्क=छोड़ा गया (17) सिक्खाव=सिखाना (18) पप्फुल्ल=खिलना; खिज्ज अफसोस करना (23) आणायलाना ।
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[ प्रौढ अपभ्रंश रचना सौरभ
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