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________________ दोसय = दो सौ, तिसय = तीन सौ दो सहास = दो हजार, तिलनख = तीन लाख आदि । (6) दो प्रकार, तीन प्रकार आदि शब्दों को प्रकट करने के लिए 'विह' लगाकर दुविह = दो प्रकार का, तिविह, चउविह, छविह, दसविह, तैरसविह, चउदसविह, सोलहविह, सत्तविह, अट्ठविह, अट्ठारहविह प्रादि प्रयोग में लिए जाते हैं (प.च. 3.2.9, 16.1,2) 1 (x) कह ( कितना ) शब्द का प्रयोग तीनों लिंगों के बहुवचन में होता है ( पिशल, T. 668) I प्रथमा द्वितीया तृतीया चतुर्थी व षष्ठी (i) कइहं, कइहुं (ii) कइण्ह, कइहं कइत्तो, कईो, कई उ कइसु. कइसुं पंचमी सप्तमी 46 संकलित वाक्य प्रयोग विशेषण (गरणनावाचक संख्या शब्द ) (1) उ एक्कै मन्तिए रज्ज - कज्जु । ( 16.6 प.च.) कइ कइ कहिं, कहि, कहिं (2) उ एक्कें विहिं तिहिं कज्ज-सिद्धि 1 ( 16.6 प.च.) - एक दो तीन ( मन्त्रियों से ) कार्य सिद्धि नहीं होती है ) । - एक मन्त्री के द्वारा राज-काज नहीं ( चल सकता है) । (3) श्रकिलेसें वीस हिं होइ मन्तु । ( 16.6 प.च.) ] ( 4 ) मणु चवइ गरुन वारहहुं बुद्धि । ( 16.6 पच. ) - मनु कहते हैं बारह (मन्त्रियों) की बुद्धि मारी (होती है)। - बोस (मन्त्रियों) से बिना कष्ट के मन्त्रणा होती है । Jain Education International [ प्रोढ अपभ्रंश रचना सौरभ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002695
Book TitlePraudh Apbhramsa Rachna Saurabh Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1997
Total Pages202
LanguageApbhramsa, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size5 MB
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