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________________ सहस /सहास =हजार, लक्ख-लाख के रूप 'सय' की भांति होते हैं । कोडि=करोड़ के रूप एकवचन एवं बहुवचन स्त्रीलिंग 'सट्ठि' की भांति होते हैं। (ix) संख्यावाचक शब्दों के प्रयोग - (1) दो से अट्ठारह तक के शब्द सदैव बहुवचन में ही प्रयुक्त होते हैं । (2) जब 'बीस मनुष्य' कहना होता है, तो दो प्रकार से कहा जाता है - (क) वीस नर-बीस मनुष्य । ___(ख) नरहुँ वीस=मनुष्यों की बोस (संख्या)। (3) उन्नीस से लेकर सौ तक और इसके भी आगे जितने संख्यावाची शब्द हैं, उनके प्रयोग सामान्यतया एकवचन में होते हैं। जब ये संख्यावाची शब्द बीस, पचास, आदि ऐसी एक अपनी संख्या सूचित करते हों, तो वे एकवचन में प्रयुक्त होते है. चाहे उनका विशेष्य बहुवचनान्त हो। तीस फल खायो तीस फलाई खाइ । यहां 'तीस' का प्रयोग ‘एकवचन' में हैं। इसकी विभक्ति तो विशेष्य के अनुसार है, पर वचन और लिंग नहीं । जब हम कहें-तीन तीस फल खायो= 'तिणि तीसउ फलाइं खाइ' तो तीस में बहुवचन का प्रयोग होगा । जब 'तीस' आदि शब्द प्रपनी अनेकता बताते हैं तो वे बहुवचनान्त होते हैं। इसी प्रकार सय, सहस, काडि आदि शब्द एकवचनान्त और बहुवचनान्त होंगे। (देखें उदाहरण वाक्य 49 से 55 तक)। (4) सौ और दो सौ, दो सौ और तीन सौ आदि संख्यावाचक शब्दों के बीच संख्या बनाने के लिए 'अहि' या 'उत्तर/उत्तरीय' शब्द लघु संख्या के साथ लगा दिया जाता है, जैसे 'अटोतरसय =एक सौ पाठ' (प. च. 3.4), अट्ठोत्तर-सहास=एक हजार आठ या पंचाहि प्र-सय= एक सौ पांच, कोडिसहास-दहुत्तरिय=दस हजार करोड़ (9.7 प. च ), बारहाहिन दो सहस-दो हजार बारह या बारहोत्तर दो सहस=दो हजार बारह, एक्काहि लक्ख = एक लाख एक या एक्कोत्तर लक्ख =एक लाख एक । (5) दो सौ आदि संख्या के लिए दो आदि संख्यावाचक शब्द पहले रख कर सय, सहास, लक्ख आदि बाद में रखकर संख्या बनाई जाती है, जैसे प्रौढ अपभ्रंश रचना सौरभ ] [ 45 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002695
Book TitlePraudh Apbhramsa Rachna Saurabh Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1997
Total Pages202
LanguageApbhramsa, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size5 MB
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