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________________ पंचमी सप्तमी पचत्तो, पंचाओ, पचाउ, पंचाहि, पंचेहि पंचसु, पंचसुं (पिशल, पृ. 654) छ/छह, सत्त, अट्ठ, णव, दस/दह, एयारह, बारह/वारह, तेरस/तेरह, च उदह, पण्णारह, सोलह, सत्तारह, अट्ठारह-इन सब के रूप 'पंच' की भांति होते हैं। (vi) उन्नीस से अट्ठावन तक के शब्द ह्रस्व प्रकारान्त होते हुए भी स्त्रीलिंग के समान प्रयुक्त होते हैं। इनके रूप 'बीस' के अनुसार होंगे। ये रूप कह कहा के अनुसार होंगे। वीस/बीस (तीनों लिंगों में) एकवचन बहुवचन प्रथमा वीस वीसउ, वीसमो, वीस द्वितीया वीस वीसउ, वीसमो, वीस तृतीया वीसए वीसहि चतुर्थी व षष्ठी वीसहे वीसह, वीसहूं, वीस पचमी वीसहे वीसह, वीसहं सप्तमी वीसहि वीसहि (vii) उनसठ से निन्नानवे तक के शब्दों के रूप 'सठि' या 'मसी' के अनुसार चलेंगे । इनके रूप एकवचन और बहुवचन दोनों में स्त्रीलिंग 'मह' या 'लच्छी' के समान प्रयुक्त होते हैं। सट्ठि (तीनों लिंगों में)2 एकवचन बहुवचन प्रथमा सट्ठिउ, सट्ठिो , सट्ठि द्वितीया सट्टि सट्ठिउ, सट्ठिो , सट्ठि सट्ठि 1. श्रीवास्तव, अपभ्रंश भाषा का अध्ययन, पृ. 154 1 2. श्रीवास्तव, अपभ्रंश भाषा का अध्ययन, पृ. 157 । प्रौढ अपभ्रंश रचना सौरम ] [ 43 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002695
Book TitlePraudh Apbhramsa Rachna Saurabh Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1997
Total Pages202
LanguageApbhramsa, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size5 MB
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