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(iii) 'ति' शब्द के तीनों लिंगों के बहुवचन में रूप निम्न प्रकार से होंगे -
प्रथमा
तिणि
द्वितीया
तिष्णि
तृतीया
(i) तिहिं
(ii) तीहि तीहि तीहिं
चतुर्थी व षष्ठी (i) तिहुं, तिह (ii) तिह, तिह
पंचमी
सप्तमी
(iv) 'चउ' शब्द के तीनों लिंगों के बहुवचन में रूप निम्न प्रकार से होंगे -
प्रथमा
(i) चउ
(ii) चत्तारो, चउरो, चत्तारि, चयारि ( 43.10 प.च.) (i) चउ
(ii) चत्तारो, चउरो, चत्तारि
द्वितीया
तित्तो, ती, तीउ
तीसु, तीसुं
तृतीया
चतुर्थी व षष्ठी (i) चउ
पंचमी
सप्तमी
(ii) चउण्ह, चउण्हं
चउत्तो, चऊप्रो, चऊउ, चउम्र (हे. प्रा. व्या. 3.17 )
चऊसु, चऊर्स् : चउसु, चउसुं (हे. प्रा व्या. 3.17)
(v) पंच शब्द के तीनों लिंगों के बहुवचन में रूप निम्न प्रकार से होंगे -
प्रथमा
पंच
द्वितीया
पंच
चउहि चउहिं, चउहिँ ; चऊहि, चऊह, चऊहिं (हे प्रा.व्या. 3.17, पिशल पृ. 652 )
42 ]
तृतीया
चतुर्थी व षष्ठी (i) पंचह, पंचहुं
(ii) पंच, पंच
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पंचहि, पंचहि, पंचाहिँ (पिशल पृ. 654)
[ प्रौढ अपभ्रंश रचना सौरभ
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