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________________ 12. पुणु णरवइ मंदिरे गय तुरन्त । (69.8 प.च) ----फिर राजा तुरन्त मन्दिर में गया । 13. णिउ रामहो पासु तुरन्तएण। (68.1 प.च.) -(वह) (उसे) जल्दी से राम के पास ले गया । 14. सो रिसि सङ गु तुरन्तें वन्दिउ । (5.16 प.च.) - वह मुनि संघ जल्दी से वन्दना किया गया । 15. जं जाणहि त करहि तुरन्तउ । (5.16 प.च.) -जिसको जानो उसको तुरन्त करो । 16. जो परवर-लक्खेहि पण विज्जइ । सो पहु मुअउ अवारें णिज्जइ । (5.2 प.च.) --जो श्रेष्ठ नर लाखों द्वारा प्रणाम किया जाता है, वह प्रभु मरा हुआ तुरन्त ले जाया जाता है । (5) 1. तं विहिसणा पई पजम्पियं । दहमुहस्स रण कयाइ जं पियं । (57.5 प.च.) -हे विभीषण ! तुम्हारे द्वारा वह कहा गया है जो रावण के लिए प्रिय कभी नहीं है। 2. चिरु जेण ण इच्छिउ दप्पणउ । रहे तेण णिहालिउ अप्पणउ । (61.3 प.च.) -जिस योद्धा के द्वारा दीर्घ काल तक (बहुत समय तक) दर्पण नहीं देखा गया था उसके द्वारा रथ में अपना मुख देख लिया गया । 3. पढमु सरीरु ताहे रोमञ्चिउ । पच्छए णवर विसाएं खञ्चिउ । (50.3 प.च.) -पहले उसका शरीर पुलकित हुआ किन्तु बाद में (वह) विषाद के द्वारा भरी गई या विषाद से भर उठी। 4. पच्छए पाणिग्गहणु करेसमि । (26.4 प.च.) -बाद में (मैं) पाणिग्रहण करूंगा। 16 ] [ प्रौढ अपभ्रंश रचना सौरम Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002695
Book TitlePraudh Apbhramsa Rachna Saurabh Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1997
Total Pages202
LanguageApbhramsa, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size5 MB
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