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________________ 2. सीयए वुत्तु 'पुत्तु महु एवहिं। छुडु वद्धउ छुडु धरउ सुखेवेहिं (सुख+एवेहिं )।' (35.12 प.च ) -सीता के द्वारा कहा गया-इस समय (तुम) मेरे पुत्र (हो) । (तुम) ___ शीघ्र बढो, शीघ्र इस समय सुख धारण करो। 3. सो अइरेण विणासइ । (71.12 प.च.) -वह शीघ्र नष्ट हो जाता है । 4. लहु सण्णाह भेरि अप्फालिय । (40.14 प.च.) -शीघ्र ही संग्राम भेरी बजवा दी गई । 5. अत्थाण-खोहु रिणविसेरण जाउ । (37.8 प.च.) __ -पलभर में सभा में क्षोभ उत्पन्न हुआ । 6. तो एम पसंसेवि तक्खणेरण । 'हिय जाणइ' अक्खिउ लक्खणेण । (40.13 प.च) -तब इस प्रकार प्रशंसा करके, लक्ष्मण द्वारा तत्काल (उसी समय) कहा गया (कि) जानकी हरण कर ली गई है । 7. तक्खणे उजे पण्णति-वलेण विरिणम्मिय वलं । (46.3 प.च.) -(उनके द्वारा) विद्या के बल से तत्काल (उसी समय) सेना बना ली गई। 8. णिविसें तं जम-गयरु पराइउ । (11.9 प.च.) -पलभर में वह यम के नगर पहुंच गया। 9. खणे खणे वोल्लहि णाई अयाणउ । (44.12 प.च.) -(तुम) हर क्षरण अज्ञानी की तरह बोलते हो। 10. पट्टविय विसल्ल-खरणन्तरेण । (69.15 प.च.) -विशल्या कुछ देर के बाद भेज दी गई। 11. जे मुश्रा वि जीवन्ति खणं खणे । दुज्जय हरि-वल होन्ति रणङ्गणे । (70.1 प.च.) -मरे हुए भी जो क्षण-क्षण में जीते हैं, (तो) युद्ध में लक्ष्मण की सेना दुर्जय होगी। प्रौढ अपभ्रंश रचना सौरभ ] [ 15 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002695
Book TitlePraudh Apbhramsa Rachna Saurabh Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1997
Total Pages202
LanguageApbhramsa, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size5 MB
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