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5. जो णाणु पयासि खणे खणे/खणं खणे जीवइ, सो जीवणे संति पावइ ।
-जो ज्ञान के प्रकाश में हर क्षरण जीता है, वह जीवन में शांति पाता है । 6 सामिए खरणन्तरेण भिच्च कोक्किन ।
-स्वामी के द्वारा कुछ देर के बाद में नौकर बुलाया गया ।
(5) 1. मुणि हिंसा ण कयाइ करेसइ ।
-मुनि हिंसा कभी नहीं करेगा। 2. चोरु चिरु णरयि पडेसइ ।
-चोर दीर्घकाल तक नरक में पड़ेगा । 3 पढमु गव्वु जिणि, पच्छा/पच्छए/पच्छइ अण्णा दोसा जिणु ।
-पहिले अहंकार को जीतो, बाद में अन्य दोषों की जीतो । 4. प्रज्जहो तुहं महु मित्तु अत्थि ।
-आज से तुम मेरे मित्र हो । 5. पहिलउ तुहुँ भोयणु करि, पडिवउ/पडिवा तुहुँ गाणु गाअ ।
–पहिले तुम भोजन करो, फिर तुम गाना गाओ।
संकलित वाक्य-प्रयोग (1) 1. दिण्णु देव पइं मग्गमि जइयहुं । णि यय-सच्चु पालिज्जइ तइयतुं । (21.4
प.च.) -हे देव (राजन् ) ! आपके द्वारा दे दिया गया है । जब (मैं) माँगू, तब
निज सत्य (वचन) पाला जाए। 2. तहिं णिवसइ मयरद्धउ जइयहुं । अवरु चोज्जु अवयरियउ तइयहुं ।
(3.5.10 णा.च.) -जब नागकुमार वहां निवास कर रहा था, तब (एक) अन्य आश्चर्य घटित
हुआ। 3. एह बोल्ल णिम्माइय जावेहिं । ढुक्कु भाणु अत्थवरणहो ताहिं । (23.9
प.च.) -जब/जिस समय यह वचन कहे गये, तब हो/उस समय ही सूर्य अस्ताचल पर पहुंच गया।
प्रौढ अपभ्रंश रचना सौरभ ]
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