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________________ 3. एवहिं तुहुँ चिट्ठ । -अभी तुम ठहरो/बैठो। 4. तुहुँ कइयहुं जग्गेससि । -तुहं कब जागोगे ? (2) 1. जाम/जाव/जाउं/जाम्व तुहं सोयसि, ताम/ताव/ताउं हउं जग्गउं । -जब तक तुम सोते हो, तब तक मैं जागता हूँ। (3) 1. तुहं प्रज्ज/अज्जु तहो उपकरि, कल्ले/कल्लए/परए हउं तुज्झ उपकरेसउं । -तुम आज उसका उपकार करो, कल मैं तुम्हारा उपकार करूँगा । 2. अज्जु वि पइं एहु कज्जु ण किउ । -प्राज तक तुम्हारे द्वारा यह कार्य नहीं किया गया । 3 सो अज्जु-कल्ले तत्थु जाएसइ । वह प्राज-कल में वहां जायेगा। 4. अणुदिणु/दिवे-दिवे तई फलाई खाएव्वउं । -प्रतिदिन तुम्हारे द्वारा फल खाए जाने चाहिए । 5. पिउ रत्तिदिणु/रत्तिन्दिउ तउ चितइ । ---पिता रात-दिन तुम्हारी चिन्ता करता है । 6. कन्दिवसु/कंदिवसु हउं तउ घरे अच्छउं । -किसी दिन मैं तुम्हारे घर में बैठूगा । (4) 1. तेण झत्ति/छुडु/अइरेण/लहु लुक्किा । -उसके द्वारा शीघ्र छिपा गया । 2. पई मित्तसु तुरन्त/तुरन्तएण/तुरन्ते/अवारे/तुरन्तउ प्रोसह कीणिज्जउ । - तुम्हारे द्वारा मित्र के लिए जल्दी जल्दी से तुरन्त औषधि खरीदी जाए । 3. विमाणु जुज्झेवं णिविसेण/णिविसें उड्डिउ । -विमान युद्ध के लिए पल भर में उड़ा। 4. तासु पासु संदेसउ तक्खणेण/तक्खणे पेसिउ । - उसके पास सन्देश तत्काल भेजा गया । 10 ] . प्रौढ अपभ्रंश रचना सौरभ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002695
Book TitlePraudh Apbhramsa Rachna Saurabh Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1997
Total Pages202
LanguageApbhramsa, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size5 MB
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