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________________ लच्छी (स्त्री ) -- ( लच्छी + जस्) = ( लच्छी + उ, प्रो) = लच्छोउ, लच्छोश्रो (प्रथमा बहुवचन) -- ( लच्छी + शस् ) = ( लच्छी + उ, प्रो) = लच्छीउ, लच्छीप्रो (द्वितीया बहुवचन) घेणु (स्त्री.) - (धेणु + जस्) = (धेणु + उ, श्रो) = घेणउ, धणुश्रो बहू 19. ट ए टए 118 ( स्त्री ) - ( बहू + जस् ) = ( बहू + उ प्र ) = बहूउ, बहूप्रो (प्रथमा बहुवचन) -(धेणु + शस्)= (धेणु + उ, प्रो) = घेणउ, घेणुश्रो (द्वितीया बहुवचन) 4/349 [ ( ट :) + (ए) ] 20. ङस् - ङस्योर्हे (प्रथमा बहुवचन) ~ (बहू + शस्)=(बहू +उ, श्रो) = बहूउ, बहूप्रो (द्वितीया बहुवचन) ट: (टा) 6/1 ए (ए) 1/1 (स्त्रीलिंग शब्दों में ) 'टा' के स्थान पर 'ए' (होता है ) । अपभ्रंश में अकारान्त, इकारान्त और उकारान्त स्त्रीलिंग शब्दों में 'टा' (तृतीया एकवचन के प्रत्यय) के स्थान पर 'ए' होता है । कहा (स्त्री.) - ( कहा + टा) = ( कहा + ए ) = कहाए (तृतीया एकवचन ) मइ (स्त्री.) - ( मइ + टा) = (मइ + ए ) = मइए ( तृतीया एकवचन ) लच्छी (स्त्री)- (1च्छी +टा) = ( लच्छी + ए ) = लच्छीए (तृतीया एकवचन ) घेणु (स्त्री) - ( घेणु + 21 ) = (धेणु + ए = धेणुए (तृतीया एकवचन ) बहू ( स्त्री ) - ( बहू + टा ) = ( बहू + ए ) बहूए ( तृतीया एकवचन ) Jain Education International 4/350 ङस् -ङस्योहॅ [(ङस्योः) + (है) | [ ( ङस् ) - ( ङसि ) 6 / 2] हे ( है ) 1/1 ] [ प्रौढ अपभ्रंश रचना सौरम For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002695
Book TitlePraudh Apbhramsa Rachna Saurabh Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1997
Total Pages202
LanguageApbhramsa, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size5 MB
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