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साहु (पु.) -(साहु+टा)=(साहु +एं, ण, -)साहुएं, साहरण, साई सयंभू (पु.) -(सयंभू+टा)=(सयंभू+एं, ण, -)=सयंभूएं, सयंभूरण, सयंभू महु (नपु.) -(महु +टा)=(महु -+-एं, ण, -)-महुएं, महुण, महुं
(तृतीया एकवचन)
14. स्यम्-जस-शसां-लुक 4/344
स्यम्-जस्-शसां-लुक् (सि)+ (अम्)-जस्-[(शसाम्)+लुक्)। [(सि)-(अम्)-(जस्)-(शस्) 6/3] लुक् (लुक्) 1/1 (अपभ्रंश में) सि, अम्, जस्, शस् के स्थान पर लोप (होता है) अपभ्रंश में पुल्लिग, नपुंसकलिंग व स्त्रीलिंग शब्दों से परे 'सि' (प्रथमा एकवचन के प्रत्यय), 'अम्' (द्वितीया एकवचन के प्रत्यय), 'जस्' (प्रथमा बहुवचन के प्रत्यय) और 'शस्' (द्वितीया बहुवचन के प्रत्यय) के स्थान पर लोप होता है । (देव+सि, अम्, जस्, शस्)=(देव--0, 0, 0, 0)=देव, देव, देव, देव इसी प्रकार सभी शब्दों के रूप होंगे ।
प्रथमा
प्रथमा बहुवचन
द्वितीया एकवचन
एकवचन
द्वितीया बहुवचन देव
देव
देव
हरि
गामणी
गामणी साहु
देव (पु.)- देव हरि (पु.)- हरि गामरणी (पु.)- गामणी साहु (पु.)- साहु सयंभू (पु.)- सयंभू कमल (नपु.)- कमल वारि (नपु.)- वारि महु (नपु.)- महु कहा (स्त्री.)- कहा
हरि गामणी साहु सयंभू .
साहु सयंभू
सयंभू
कमल
कमल
कमल
वारि
वारि
वारि
महु
महु
कहा
कहा
कहा
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प्रौढ अपभ्रंश रचना मौरम
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