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________________ पाठ-13 अपभ्रंश व्याकरण-सूत्र ____ यह गौरव की बात है कि हेमचन्द्राचार्य ने अपभ्रंश की व्याकरण लिखी। उन्होंने इसकी रचना संस्कृत भाषा के माध्यम से की। अपभ्रंश व्याकरण को समझाने के लिए संस्कृत-व्याकरण की पद्धति के अनुरूप संस्कृत भाषा में सूत्र लिखे गये । किन्तु सूत्रों का आधार संस्कृत भाषा होने के कारण यह नहीं समझा जाना चाहिए कि अपभ्रंश व्याकरण को समझने के लिए संस्कृत के विशिष्ट ज्ञान की आवश्यकता है । संस्कृत के बहुत ही सामान्यज्ञान से सूत्र समझे जा सकते हैं। हिन्दी, अंग्रेजी आदि किसी भी भाषा का व्याकरणात्मक ज्ञान भी अपभ्रंश-व्याकरण को समझने में सहायक हो सकता है। अगले पृष्ठों में हम अपभ्रंश-व्याकरण के संज्ञा व सर्वनाम के सूत्रों का विवेचन प्रस्तुत कर रहे हैं । सूत्रों को समझने के लिए स्वरसन्धि, व्यंजनसन्धि तथा विसर्गसन्धि के सामान्य-ज्ञान की आवश्यकता है । साथ ही संस्कृत प्रत्यय-संकेतों का ज्ञान भी होना चाहिए तथा उनके विभिन्न विभक्तियों में रूप समझे जाने चाहिए। अपभ्रंश में केवल दो ही वचन होते हैं-एकवचन तथा बहुवचन । अतः दो ही वचनों के संस्कृतप्रत्यय-सकेतों को समझना आवश्यक है । ये प्रत्यय-संकेत निम्न प्रकार हैं विभक्ति एकवचन के प्रत्यय बहुवचन के प्रत्यय प्रथमा जस् शस् भिस् भ्यस द्वितीया तृतीया चतुर्थी पंचमी षष्ठी सप्तमी भ्यस् प्राम सूप *सन्धि के नियमों के लिए परिशिष्ट देखें । प्रौढ अपभ्रंश रचना सौरम ] [ 101 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002695
Book TitlePraudh Apbhramsa Rachna Saurabh Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1997
Total Pages202
LanguageApbhramsa, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size5 MB
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