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4. विद्धन्तहो रयणासव-तणयहो दिट्ठि-मुट्ठि-संधाणु ण णावइ । (11.12 प.च.)
-अाक्रमण करते हुए रत्नाश्रव के पुत्र (रावरण) की दृष्टि और मुट्ठी का सन्धान ज्ञात नहीं हो रहा था ।
सप्तमो विभक्ति के प्रयोग 1. कि पइसरमि वलन्ते हासणे । (29.4 प.च.)
क्या (मैं) जलती हुई आग में प्रवेश करूं ?
स्त्रीलिंग के प्रयोग 1. रावणेण सरि दिट्ठ वहन्ती। (14.10 प.च.)
-रावण के द्वारा बहती हुई नदी देखी गई । 2. तं णिसुणेवि वेवन्ति समुट्ठिय अप्पुणु । (19.2 प.च.)
-यह सुनकर (वह) स्वयं काँपती हुई उठी । 3. णयरहो दूरे वणन्तरेण अजण रूवन्ती प्रोग्रारिया । (19.2 प च.) ___ -- नगर से दूर वनान्तर में रोती हुई अन्जना उतार दी गयी ।
4. उद्विय रोवन्ती । (45.7 प.च.) __ -(वह) बिलाप करती हुई उठी । 5. 'हा हा माए' भरणनितहि सहियहि कलयलु किउ । (21 8 प च.)
-'हा मां, हा माँ' कहती हुई सखियों के द्वारा कोलाहल किया गया । 6. अंसु फुसन्तिए वुच्चइ लीहउ कड्ढन्तिए । (18.10 प च )
-प्रांसू पोंछते हुए और लकीर खींचते हुए (उसके द्वारा) कहा जाता है । 7. दसाणण-पत्तिए वुच्चइ राम-घरिणि विहसन्तिए । (41.10 प च) ।
-दशानन की हंसती हुई पत्नी के द्वारा राम की गृहिणी से कहा गया ।
प्रेरणार्थक के साथ वर्तमान कृदन्त-प्रयोग
1. पालण-खम्भेण भामतें पहइ भमाडिय । (22.15 पच.)
-घुमाते हुए पालान स्तम्भ से (उसके द्वारा) (मानो) धरती घुमा दी गई।
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[ प्रौढ अपभ्रंश रचना सौरभ
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