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शंकालोकाचार-धर्माचरण-मूढत्व मिथ्यादृष्टिमाननमस्कार पूजाकरण जिनमुनिगुणकीर्तननमस्काराकरणस्नान-तर्पणश्राद्धादिकरण-मिथ्यात्वपोषण-तत्वश्रद्धाभावादयो दर्शनमोहासवस्य निमित्ताः भवन्ति।
स्वपरतीव-कषायोत्पादनव्रतादियुक्त-गर्हण- रौदपरिणाम बहुलोभाभिमान-निकृति-धर्मध्वंसननिःशीलत्वगुणितपस्वि मात्सर्य-कषायीजनसंगति-यमनियमक तक्षमाद्यभावादयः कषाय-वेदनीयासवकारणा विज्ञेयाः।
धर्मिजनदीनोपहासादिहासकंदर्पहासबहुप्रलापा- श्चर्योत्पादनलज्जाभावादयो हास्यहेतवः स्युः। विचित्रक्रीडण-श्रृंगारादि
शंका, लोकाचार एवं धर्माचरण में मूढ़ता मिथ्यादृष्टियों का सम्मान, नमस्कार पूजन, मुनिगण अप्रशंसा-अनमन, नदी आदि में स्नान, दिवंगत पूर्वजों के प्रति जल तर्पण, श्राद्ध आदि करना, मिथ्यात्व पोषण, तत्त्वश्रद्धा अभाव आदि दर्शन मोहनीय कर्म के आश्रव के कारण होते हैं।
स्वयं तीव्र कषाय करना, दूसरों में तीव्र कषाय उत्पन्न करना, व्रती निंदा, रौद्र परिणाम, बहुत लोभ, बहुत अभिमान, दुष्टता, धर्म नाश, निःशीलत्व, गुणी तपस्वी जनों के प्रति मात्सर्य भाव, कषायी लोगों की संगति, यम, नियम, व्रत एवं क्षमादिभाव का अभाव ये सब कषाय वेदनीय कर्म के आश्रव के कारण जानना चाहिए।
धर्मीजनों की दीनता पूर्वक हंसी, बहुत हंसी मजाक, कामविकार पूर्वक हंसी, बहुप्रलाप, आश्चर्य उत्पादन, लज्जा अभाव आदि हास्य वेदनीय के आश्रव के कारण हैं। विचित्र क्रीड़ा, श्रृंगारादि
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