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अशुभप्रकृतिनां चत्वारिस्थानानि निवकांजीरविषकालकूट -समानानि। शुभप्रकृतीनां चत्वारिस्थानानि गुड़खंडशर्करामृत
तुल्यानि।
विशेषार्थ- सर्वघाती और देशघाती के सिवाय अवशिष्ट वेदनीय, आयु, नाम
और गोत्र कर्म की 101 प्रकृतियाँ अघातिया जानना चाहिए। वे स्वयं तो आत्मगुणों के घातने में असमर्थ हैं, किन्तु घातिया प्रकृतियों की प्रतिभागी हैं अर्थात् उनके सहयोग से आत्मगुणों को घातने में समर्थ होती हैं। इन 101 अघातिया प्रकृतियों में ही पुण्य और पाप रूप विभाग है। शेष चार घातिया कर्मों की 47 प्रकृतियों को तो पापरूप ही जानना चाहिए। अघातिया कर्म की 101 प्रकृतियां दारु, अस्थि और शैल रूप तीन प्रकार के भावों से परिणत होती हैं ये प्रकृतियां लता रूप भावों से परिणत नहीं होती है।
अशुभ प्रकृतियों के चार स्थान- निंब, कांजीर, विष और कालकूट (हलाहल) के सामन हैं और शुभ प्रकृतियों के चार स्थानगुड़, खाण्ड, शर्करा और अमृत के समान हैं। विशेषार्थ- अप्रशस्त प्रकृतियों के प्रतिभाग निंब, कांजीर, विष और कालकूट के समान हैं। जिस प्रकार निम्ब, कांजीर, विष और कालकूट एक दूसरे की अपेक्षा अधिक–अधिक कटु हैं। उसी प्रकार निम्बभाग, कांजीरभाग, विषभाग
और कालकूटभाग रूप अप्रशस्त प्रकृतियों के स्पर्धक दुःख के कारण हैं। अशुभ प्रकृतियां निम्ब, कांजीर, विष और कालकूट या निम्ब कांजीर विष अथवा निम्ब, कांजीर इन तीन भाव रूप परिणत होती हैं। शुभ प्रकृतियों के प्रतिभाग अर्थात् शक्ति के भेद गुड़, खाण्ड, शर्करा और अमृत के समान हैं। जैसे गुड़, खाण्ड, शर्करा और अमृत एक दूसरे से अधिक-अधिक सुख के कारण अर्थात् मिष्ट हैं उसी प्रकार गुड़ भाग, खाण्ड भाग, शर्कराभाग, और अमृत भाग रूप प्रशस्त प्रकृति के स्पर्धक अधिक-अधिक. सांसारिक सुख के कारण हैं। प्रशस्त प्रकृतियां गुड़, खाण्ड, शर्करा, अमृत या गुड़, खाण्ड, शर्करा अथवा गुड़ व खाण्ड इन तीन भाव रूप परिणत होती हैं।
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