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नीच
अस्थिर
20 कोड़ाकोड़ी सागरो. 2/7 सा.* शुभ
10 कोड़ाकोड़ी सागरो. | 2/7 सा.* अशुभ
20 कोड़ाकोड़ी सागरो. 2/7 सा.* सुभग
10 कोड़ाकोड़ी सागरो. 2/7 सा.* दुर्भग
20 कोड़ाकोड़ी सागरो. 2/7 सा.* सुस्वर
10 कोड़ाकोड़ी सागरो. 2/7 सा.* दुःस्वर
20 कोड़ाकोड़ी सागरो. 2/7 सा.* आदेय 10 कोड़ाकोड़ी सागरो.
2/7 सा.* अनादेय
20 कोड़ाकोड़ी सागरो. 2/7 सा.* यश:कीर्ति
10 कोड़ाकोड़ी सागरो. 8 मुहूर्त अयशःकीर्ति | 20 कोड़ाकोड़ी सागरो. | 2/7 सा.* निर्माण
20 कोड़ाकोड़ी सागरो. | 2/7 सा.* तीर्थंकर
अंतः कोड़ाकोड़ी | अंतः कोडको. गोत्र उच्च
10 कोड़ाकोड़ी सागरो. 8 मुहूर्त ..
20 कोडाकोड़ी सागरो. | 2/7 सा.* अंतराय दान-लाभादि 5 | 30 कोड़ाकोड़ी सागरो. | अन्तमुहूर्त नोट- 1. उपर्युक्त संदृष्टि ध.पु. 6 व महाबंध पु. 2 के अनुसार है।
2. यह संदृष्टि (*) इस चिन्ह 3/7,7/7,4/7, 2/7 सागररूप संख्या पल्योपम के असंख्यातवें भाग से हीन ग्रहण करना चाहिए, किन्तु 2000/7 सागररूप संख्या पल्योपम के संख्यातवें भाग से हीन ग्रहण करना चाहिए।
3. संदृष्टि में 2000/7 सागर* दिया है। वह असंज्ञी पंचेन्द्रिय की अपेक्षा दिया है। क्योंकि वैक्रियिक षट्क का बंध एक इन्द्रिय एवं विकलत्रय जीव नहीं करते हैं। असंज्ञी पंचेन्द्रिय जीव के मिथ्यात्व कर्म का उत्कृष्ट स्थिति बंध एक हजार सागर है। इससे नाम और गोत्र का जघन्य स्थिति बंध पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम 2000/7 सागर होता है। शंका- स्त्रीवेद, हास्य, रति, स्थिर, शुभ, सुभग, सुस्वर आदि प्रकृतियों का जघन्य स्थिति बंध पल्योपम के असंख्यातवें भाग से कम सागरोपम के 2/7 भाग मात्र घटित नहीं होता है। क्यों कि इन स्त्रीवेदादि प्रकृतियों का बीस कोडाकोड़ी सागरोपम प्रमाण उत्कृष्ट स्थिति बंध नहीं होता है। समाधान- यद्यपि इन स्त्रीवेदादि प्रकृतियों की उत्कृष्ट स्थिति बीस कोड़ाकोड़ी सागरोपम प्रमाण नहीं है तथापि मूल प्रकृति की उत्कृष्ट स्थिति के अनुसार ह्रास को प्राप्त होती हुई इन प्रकृतियों का पल्योपम के असंख्यातवें भाग से कम सागरोपम के 2/7 भागमात्र जघन्य स्थिति बंध में कोई विरोध नहीं है। (ध.पु. 6 पृ. 190)
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