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________________ पंचज्ञानावरणानि चक्षुरचक्षुरवधिकेवलदर्शनावरणानि निद्रा प्रचला द्विधावेदनीयं संज्वलनचतुष्कं हास्यादिषट्क पुंवेदः देवायुः देवगतिः पंचेन्द्रियजातिः वैक्रियिकतैजसकार्मणशरीराणि वैक्रियिकांगोपांगः निर्माणं समचतुरससंस्थानं स्पर्शः रसः गंधः वर्णः देवगतिप्रायोग्यानुपूयं अगुरुलघुः उपघातः परघातः उच्छवासः प्रशस्तविहायोगतिः प्रत्येकशरीरः त्रसः सुभगः सुस्वरः शुभः अशुभः बादरः पर्याप्तिः स्थिरः अस्थिरः आदेयः यशःकीर्तिः अयशःकीर्तिः तीर्थकरत्वं उच्चैर्गात्रं पंचांतरायाः एताः त्रिषष्ठिकर्मप्रकृतिः' प्रमत्तगुणस्थाने प्रमत्तसंयता बध्नाति। एतस्मिन्नेवगुणस्थाने प्रत्याख्यानावरणप्रकृतिः चतुम्रः अबंधका विज्ञेयाः। पंचज्ञानावरणानि चक्षुरचक्षुरवधिकेवलदर्शनावरणानि पंचज्ञानावरण, चक्षु, अचक्षु, अवधि एवं केवल दर्शनावरण, निद्रा, प्रचला, दो वेदनीय, संज्वलनचतुष्क, हास्यादिषट्, पुंवेद, देवायु, देवगति, पंचेन्द्रिय जाति, वैक्रियिक, तैजस एवं कार्मण शरीर, वैक्रियक आंगोपांग, निर्माण, समचतुरस्र संस्थान, स्पर्श, रस, गन्ध, वर्ण, देवगति -प्रायोग्यानुपूर्वी, अगुरुलघु, उपघात, परघात, उच्छवास, प्रशस्तविहायोगति, प्रत्येक शरीर, त्रस, सुभग, सुस्वर, शुभ, अशुभ, बादर, पर्याप्त, स्थिर, अस्थिर, आदेय, यशःकीर्ति, अयशःकीर्ति, तीर्थंकर, उच्चगोत्र और पांच अंतराय, इन 63 प्रकृतियों का प्रमत्तसंयत जीव प्रमत्तसंयत गुणस्थान में बंध करता है। इस गुणस्थान में प्रत्याख्यानावरण चतुष्क का अबंध जानना चाहिए। पांच ज्ञानावरण, चक्षु, अचक्षु, अवधि एवं केवल दर्शनावरण, (49) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002694
Book TitleKarma Vipak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinod Jain, Anil Jain
PublisherNirgrantha Granthamala
Publication Year2004
Total Pages124
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size5 MB
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