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________________ यत् वशात् स्त्रीपुंसयोः सुरूपादिगुणे सत्यपि अप्रीतिकरं दौर्भाग्यं भवति तद् दुर्भगनाम। यत् शुभकर्मवशात् देहिनामन्योन्यो मधुरः सुस्वरः जायते तत् सुस्वरनाम। येन दुष्कर्मणा प्राणिनां कटुकः परपीडाकरो दुःस्वर उत्पद्यते तत् दुःस्वरनाम। यच्छुभोदयादंगोपांगानां रमणीयत्वं भवति तच्छुभनाम। यदशादंगोपांगानां विरूपकत्वं भवति तद् अशुभनाम। यत् वशादन्यबाधाकरेषु शरीरेषु जीव उत्पद्यते तद् वादरनाम। येन दुष्कर्मोदयेनांगी सूक्ष्मकायेषु जायते तत् सूक्ष्मनाम। जा जिस कर्म के उदय से स्त्री और पुरुषों में रूपादि गुणों के होने पर भी अप्रीतिकर अवस्था होती है, वह दुर्भग नामकर्म है। जिस कर्म के उदय से प्राणियों के दूसरों को मधुर लगने वाला स्वर उत्पन्न होता है, वह सुस्वर नामकर्म है। जिस कर्म के उदय से प्राणियों के कटुक दूसरों को दुःख करने वाला स्वर उत्पन्न होता है, वह दुःस्वर नामकर्म है। जिस कर्म के उदय से आंगोपांगनाम कर्मोदय जनित अंगों और उपांगों के शुभपना (रमणीयत्व) होता है, वह शुभ नामकर्म जिस कर्म के उदय से अंग और उपांगों में अशुभपना उत्पन्न होता है, वह अशुभ नामकर्म है। जिस कर्म के उदय से जीव दूसरों को बाधा दिये जाने योग्य स्थूल शरीर में उत्पन्न होता है, वह बादर नामकर्म है। जिस कर्म के उदय से प्राणी सूक्ष्म शरीर में उत्पन्न होता है, वह सूक्ष्म नामकर्म है। (36) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002694
Book TitleKarma Vipak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinod Jain, Anil Jain
PublisherNirgrantha Granthamala
Publication Year2004
Total Pages124
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size5 MB
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