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यस्य कर्मस्कंधस्योदयेन शरीरपुद्गलाः सुगंधा भवति तत् सुगंधनाम। येन कर्मविपाकेन शरीरपुद्गला दुर्गधा भवंति तत् दुर्गधनाम। नेतयोरभावः। हस्त्यादिजातिणु प्रतिनियतगं गोपलभात्। यस्य कर्मणा उदयेन शरीरपुद्गलानां कृष्णता भवति तत् कृष्णनाम। यत् कर्मवशात् कायपुद्गलानां नीलत्वं भवति तत् नीलनाम। येन कर्मविपाकेन शरीरपुदगलानां रक्तता जायते तत् रक्तवर्णनाम। येन कर्मोदयेन देहाणुस्कंधानां पीतत्वमुत्पद्यते तत् पीतवर्णनाम। येन कर्मविपाकेन शरीरपुद्लानां शुक्लता भवति तत् शुक्लनाम।
जिस कर्म के उदय से शरीर संबंधी पुद्गल सुगन्धित होते हैं, वह सुगंध नामकर्म है।
जिस कर्म के उदय से शरीर संबंधी पुद्गल दुर्गंधित होते है, वह दुर्गंध नामकर्म है।
गंध नामकर्म का अभाव नहीं है क्योंकि हाथी आदि में नियत गंध पाई जाती है।
जिस कर्म के उदय से शरीर संबंधी पुद्गलों का कृष्ण वर्ण होता हैं, वह कृष्ण नामकर्म है।
जिस कर्म के उदय से शरीर संबंधी पुद्गलों का नील वर्ण होता हैं, वह नील नामकर्म है।
जिस कर्म के उदय से शरीर संबंधी पुद्गलों का रक्त वर्ण होता हैं, वह रक्त नामकर्म है।
जिस कर्भ के उदय से शरीर संबंधी पुद्गलों का पीत वर्ण होता हैं, वह पीत नामकर्म है।
जिस कर्म के उदय से शरीर संबंधी पुद्गलों का शुक्ल वर्ण होता हैं, वह शुक्ल नामकर्म है।
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