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तदसंप्राप्तासृपाटिकासंहननं। यद्येतत् संहननं नामकर्म न स्यात् शरीरमसंहननं भवेत्। येन कर्मणा गंडकादिकायपुदगलानां कर्कशभावो भवति तत् कर्कश नाम। यद्वशान्मयूरपिच्छादिषु (इव) मृदुत्वं जायते तत् मृदुनाम। येन कर्मोदयेन लोहादौ (इव) गुरुत्वं भवति तद् गुरुनाम। यस्य कर्मोदयेनार्कतूलादीनां (इव) लघुत्वं जायते तल्लघुनाम। यद् कर्मवशात् तिलादौ (इव) स्निग्धता भवति तत् स्निग्धनाम। येन कर्मणा बालुकादौ (इव) रूक्षता उत्पद्यते तत् रूक्षनाम। येन कर्मणा जलादौ (इव) शीतत्वं भवति तद्शीतनाम।
हों, वह असंप्राप्तसृपाटिकासंहनन है ।
संहनन नामकर्म के अभाव में शरीर संहनन रहित हो जायेगा।
जिस कर्म के उदय से शरीर में गंडकादि रूप कठोरता होती है, वह कर्कश नामकर्म है।
__ जिस कर्म के उदय से मयूर पीछी आदि के समान शरीर में मृदुता होती है, वह मृदु नामकर्म है।
जिस कर्म के उदय से शरीर संबंधी पुद्गलों में गुरुता होती है, वह गुरु नामकर्म है।
जिस कर्म के उदय से शरीर संबंधी पुद्गलों में रूई के समान लघुता होती है, वह लघु नामकर्म है।
जिस कर्म के उदय से शरीर में तिलों की स्निग्धता के समान स्निग्धता होती है, वह स्निग्ध नामकर्म है।
जिस कर्म के उदय से प्राणीयों के शरीर में बालू के समान रूक्षता उत्पन्न होती है, वह रूक्ष नामकर्म है।
जिस कर्म के उदय से जलादि के समान शरीर मे शीतलता होती है, वह शीतनामकर्म है।
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