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यस्योदयेन प्राणी मरणेऽपि जातु तीववक्रभावं वंचनपरिणाम वंशमूलतुल्यं न त्यजति सानंतानुबंधिमाया। यद्वशान्मिथ्यादृष्टि र्मृत्युकालेपि कृमिरंगवत् किंचित् लोभं न त्यजेत् सानंतानुबंधिलोभः ।अपत्याख्यानं संयमासंयममावृणोतीति अप्रत्याख्यानावरणाः देशसंयमघातिनः। यद् विपाकेनांगी हलरेखासमानं क्रोधं त्युक्तुमसमर्थो भवति सोऽप्रत्याख्यानक्रोधः। यस्योदयेन जीवानामस्थिसादृश्यो गर्यो जायते सोऽप्रत्याख्यानमानः। यत् वशात्देहिनां मेषश्रृंगसमाना निकृति वंचना मनसि भवति सोऽप्रत्याख्यानमाया।
जिसके उदय से प्राणी का मरण होने पर भी वंश वृक्ष की मूल (जड़) के समान तीव्र माया रूप परिणाम को नहीं छोड़ता है, वह अनंतानुबंधी माया है।
जिसके उदय से मिथ्यादृष्टि मरण काल में भी कृमिरंग के समान लोभ का त्याग नहीं करता, वह अनंतानुबंधी लोभ है।
- अप्रत्याख्यान संयमासंयम का नाम है उस अप्रत्याख्यान (संयमासंयम) को जो आवरण करता है वह अप्रत्याख्यानावरणीय है। यह कषाय देश संयम को विनाश करने वाली है।
जिसके उदय से जीव हल रेखा के समान क्रोध को त्यागने में असमर्थ होता है, वह अप्रत्याख्यान क्रोध है।
जिसके उदय से जीव में अस्थि के समान गर्व होता है, वह अप्रत्याख्यान मान है।
जिसके उदय से प्राणी के भेंड़े के सींग के समान मन में वंचना होती है, वह अप्रत्याख्यान माया है।
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