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________________ अनंतानुबंधि-क्रोधमानमायालोभाः अपत्याख्यानावरण क्रोधमानमायालोभाः प्रत्याख्यानावरण-क्रोधमानमायालोभाः संज्वलन-क्रोधमानमायालोमाः षोडशप्रकारमिति कषायवेदनीयं। हास्यः रति : अरतिः शोकः भयः जुगुप्सा स्त्रीवेदः पुंवेदः नपुंसकवेदः नवविधमिति नोकषायवेदनीय। नरकायुः तिर्यगायुः मनुष्यायुः देवायु चतुर्धेत्यायुः। नरकगतिनाम तिर्यग्गगतिनाम मनुष्यगतिनाम देवगतिनाम चतुति गतिनाम। एकेन्द्रियजातिनाम दीन्दियजातिनाम त्रीन्दियजातिनाम चतुरिन्दियजातिनाम पंचेन्दियजातिनाम पंचधेति जातिनाम। औदारिकशरीरनाम वैक्रियिकशरीरनाम आहारकशरीरनाम तैजसशरीरनाम कार्मणशरीरनाम पंचधेति शरीरनाम। - अनंतानुबंधी क्रोध, मान, माया, लोभ, अप्रत्याख्यान क्रोध, मान, माया, लोभ, प्रत्याख्यान क्रोध, मान, माया, लोभ एवं संज्वलन क्रोध, मान, माया, लोभ इस प्रकार कषायवेदनीय 16 प्रकार का है। नोकषायवेदनीय नव प्रकार का है- हास्य, रति, अरति, शोक, . भय, जुगुप्सा, स्त्रीवेद, पुरुषवेद और नपुंसकवेद। आयुकर्म चार प्रकार का है- नरकायु, तिर्यंचायु मनुष्यायु और देवायु। नामकर्म 93 प्रकार का है – नरकगति, तिर्यंचगति, मनुष्यगति और देवगति इस प्रकार गतिनामकर्म चार प्रकार का है। .. ___जाति नामकर्म पांच प्रकार का है -एकेन्द्रिय जाति, द्वीन्द्रिय जाति, त्रीन्द्रिय जाति, चतुरिन्द्रिय जाति और पंचेन्द्रिय जाति । ___ शरीर नामकर्म पांच प्रकार का है -औदारिकशरीर , वैक्रियिकशरीर, आहारक शरीर, तैजसशरीर और कार्मण शरीर । Jain Education International www.jainelibrary.org For Private & Personal Use Only
SR No.002694
Book TitleKarma Vipak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinod Jain, Anil Jain
PublisherNirgrantha Granthamala
Publication Year2004
Total Pages124
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size5 MB
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