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दुर्भग, सुस्वर, दुस्वर, आदेय, अनादेय, यशःकर्ति, अयशःकीर्ति, निर्माण और तीर्थंकर इस प्रकार नामकर्म की ये 67 प्रकृतियाँ, 2 गोत्र और 5 अंतराय।
मिथ्यात्वादि गुणस्थानों में उदय, अनुदय एवं उदय व्युच्छित्ति योग्य प्रकृतियां
मिथ्यात्व गुणस्थान में उपर्युक्त 122 प्रकृतियों में से तीर्थंकर, आहारक शरीर, आहारक शरीरांगोपांग, मिश्र मोहनीय और सम्यक्त्व मोहनीय इन पांच प्रकृतियों के बिना शेष 117 प्रकृतियों का उदय है। उपर्युक्त तीर्थंकरादि पांच प्रकृतियों का अनुदय है। मिथ्यात्व, आतप, सूक्ष्म, अपर्याप्त, साधारण, स्थावर, एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय एवं चतुरिन्द्रिय इन 10 प्रकृतियों की उदय व्युच्छित्ति होती है।
दूसरे सासादन गुणस्थान में उदय योग्य 122 प्रकृतियो में से तीर्थंकर, आहारक शरीर, आहारक शरीररांगोपांग, मिथ्यात्व, मिश्र मोहनीय, सम्यक्त्व मोहनीय, आतप, सूक्ष्म, अपर्याप्त, साधारण, स्थावर, एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और नरकगत्यानुपूर्वी इन 16 प्रकृतियों के बिना शेष 106 प्रकृतियों का उदय है। उपर्युक्त तीर्थंकरादि 16 प्रकृतियों का अनुदय है। अनन्तानुबन्धी चतुष्क की उदय व्युच्छित्ति होती है।
तीसरे मिश्र गुणस्थान में उदय योग्य 122 प्रकृतियों में तीर्थंकर, आहारक शरीर, आहारक शरीर आंगोपांग, मिथ्यात्व, सम्यक्त्व, आतप, सूक्ष्म, अपर्याप्त, साधारण, स्थावर, एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रय, चारों आनुपूर्वी एवं अनंतानुबंधी चतुष्क इन 22 प्रकृतियों के बिना शेष 100 प्रकृतियों का उदय है। उक्त तीर्थंकरादि 22 प्रकृतियों का अनुदय है। सम्यग्मिथ्यात्व प्रकृति की उदय व्युच्छित्ति होती है।
चतुर्थ असंयत गुणस्थान में उदय योग्य 122 प्रकृतियों में से तीर्थकर, आहारक शरीर, आहारक शरीरांगोपांग, मिथ्यात्व, सम्यग्मिथ्यात्व, आतप, सूक्ष्म, अपर्याप्त, साधारण, स्थावर, एकेन्द्रिय, विकलत्रय, (द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रय) एवं अनंतानुबंधी चतुष्क इन 18
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