SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 73
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 15. तिथि, घर, दिन, अह्न, पक्ष आदि । + परमार्थिक । 16. नृप, भूप, भूपति, अष्टि, कला, आदि । + इन्दुकला, शशिकला । 17. अत्यष्टि । 18. धृति, + अब्रह्म, पापस्थानक । 19. अतिधृति । 20. नख, कृति । 21. उत्कृति, प्रकृति, स्वर्ग । 22. कृति, जाति, + परीषह । 23. विकृति । 24. गायत्री, जिन, अर्हत्, सिद्ध । 25. तत्त्व । 27. नक्षत्र, उडु, भ, इत्यादि । 32. दन्त, रद + रदन । 33. देव, अगर, त्रिदिश, सुर । 40. नरक । 48. जगती। 49. तान, पवन । +64. स्त्री कला । +72. पुरुष कला । यह ध्यान रहे कि एक ही शब्द कई अंकों के पर्यायवाची के रूप में प्रयुक्त होता है । अतः लेखक एवं पाठक को उसका उचित अर्थ तर्क-संगत संदर्भों में स्वयं ही लगाना चाहिए। जैसे - तत्त्व शब्द के लिए 3, 5, 9, 25 आदि अंकों का प्रयोग होता है । काव्य या साहित्य में भी कवि समय अथवा काव्य- रूढ़ि के रूप में अंकों को शब्दों में लिखने की परम्परा देखी जा सकती है । 'काव्य कल्पलतावृत्ति' सामान्य पाण्डुलिपिविज्ञान 56 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002693
Book TitleSamanya Pandulipi Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavirprasad Sharma
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2003
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy