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27. कतिपय हस्तलिखित प्रतियों में संशोधकों के द्वारा किये हुए चिह्न भी मिलते हैं :1) 'तेन जानन्ति' इस विधि से पद के अंतिम अक्षर के ऊपर खडी
रेखा मिलती है। यह खड़ी रेखा (।) इस ओर संकेत करती है कि
'तेन' और 'जानन्ति' - ये दोनों पद अलग हैं। (ii) 'ख', 'क', ष या 'ज', 'य' अथवा 'श', 'ष', 'स' - इन अक्षरों में
से किसी अक्षर के ऊपर यदि ' ' इस तरह का चिह्न किया गया
हो तो वह उचित अक्षर पढ़ने का संकेत करता है। (iii) टिप्पण का पाठ जब बाहर लिखते हैं तब ' = ' या '--' इस प्रकार
का चिह्न बनाते हैं। (iv) 'अ' या 'आ' की संधि दर्शानेवाले स्थल पर 'अ' के एक अवग्रह
का चिह्न (5) और 'आ' के लिए दो अवग्रह (55) का चिह्न
बनाते हैं। 28. अक्षर त्रुटित होने के कारण खराब हुआ भाग खाली छोड़ दिया जाता है
अथवा उस भाग को 'थ थ थ थ' या '55555' इस प्रकार का चिह्न बनाकर पूरा किया जाता है। ठीक तरह से नहीं पढ़ पाने के कारण हस्तलिखित पुस्तकों की नकल करते समय निम्न प्रकार की अशुद्धियाँ देखी जाती हैं :1. कतिपय लिपिक शिरोरेखा का प्रारंभ बिन्दु से करते हैं, जैसे कि 'स''म'
इससे 'भ' और 'न' का 'स' हो जाता है। 2. 'आ' की मात्रा का दंड (विराम चिह्न) और दंड 'आ' की मात्रा हो जाती
है। ध्यान में रखना चाहिए कि दंड हमेशा शिरोरेखा से रहित होता है और 'आ' की मात्रा शिरोरेखा से जुड़ी होती है, जैसे - 'मा' च ।' आदि। 3. 'आ' की मात्रा बाद वाले अक्षर की पडिमात्रा' (पूर्व में आने वाली – 'ए'
की मात्रा) बन जाती है और पडिमात्रा पहले अक्षर की 'आ' की मात्रा बन जाती है। जैसे कि 'राम' (राम) का रमे (राम) अथवा रमे (राम) का राम (राम)। ध्यान में रखना चाहिए 'आ' की मात्रा का निचला सिरा सीधा
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सामान्य पाण्डुलिपिविज्ञान
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