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________________ आरम्भिक व प्रकाशकीय डॉ. महावीरप्रसाद शर्मा द्वारा लिखित पुस्तक 'सामान्य पाण्डुलिपिविज्ञान' पाठकों के हाथों में समर्पित करते हुए हर्ष का अनुभव हो रहा है।। दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र श्री महावीरजी द्वारा जयपुर में सन् 1988 में 'अपभ्रंश साहित्य अकादमी' की स्थापना की गई। देश की यह पहली अकादमी है जहाँ मुख्यत: पत्राचार के माध्यम से 'अपभ्रंश भाषा' व उसकी मूल 'प्राकृत भाषा' का अध्यापन किया जाता है। यहाँ यह जानना आवश्यक है कि साहित्य एवं संस्कृति की सुरक्षा के लिए पाण्डुलिपियों के महत्त्व को अस्वीकार नहीं किया जा सकता है। हमारे पूर्वपुरुषों का चिरसंचित ज्ञान-विज्ञान पाण्डुलिपियों में सुरक्षित है। अपभ्रंश साहित्य अकादमी' ने अपने उद्देश्य के अनुरूप 'सामान्य पाण्डुलिपिविज्ञान' नामक पुस्तक को प्रकाशित करने का निर्णय लेकर पाण्डुलिपियों के अध्ययन को सुगम बनाने का मार्ग प्रशस्त किया है। 'सामान्य पाण्डुलिपिविज्ञान' को विषय-प्रवेश सहित आठ अध्यायों में विभक्त किया गया है। विषय-प्रवेश में पाण्डुलिपिविज्ञान विषयक सामान्य जानकारी दी गई है। इसके बाद प्रथम अध्याय में 'पाण्डुलिपि-ग्रन्थ-रचनाप्रक्रिया', द्वितीय अध्याय में पाण्डुलिपि-प्राप्ति के प्रयत्न और क्षेत्रीय अनुसंधान', तृतीय अध्याय में 'पाण्डुलिपि के प्रकार', चतुर्थ अध्याय में लिपि-समस्या और समाधान', पंचम अध्याय में 'पाठालोचन', षष्ठ अध्याय में 'काल-निर्णय', सप्तम अध्याय में 'शब्द और अर्थ : एक समस्या' तथा अष्टम अध्याय में 'पाण्डुलिपि संरक्षण' विषयक सामग्री का समावेश किया गया है।" डॉ. महावीरप्रसाद शर्मा ने अपनी 'सामान्य पाण्डुलिपिविज्ञान' पुस्तक अपभ्रंश साहित्य अकादमी को प्रकाशन के लिए सौंपी, इसके लिए अकादमी अपना आभार व्यक्त करती है। हमें सूचित करते हुए हर्ष है कि डॉ. शर्मा अपभ्रंश ( iii ) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002693
Book TitleSamanya Pandulipi Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavirprasad Sharma
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2003
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size8 MB
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