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यद्यपि देशी-विदेशी पाण्डुलिपि संग्रहालयों की यह सूची पूर्ण नहीं है, फिर भी इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि पाण्डुलिपियों की सुरक्षार्थ बहुत प्राचीनकाल से ही पुस्तकालयों-ग्रंथागारों की स्थापना की जाती रही है । वर्तमान समय में हमारे देश के प्रत्येक प्रदेश में पाण्डुलिपि संग्रह की व्यवस्था राज्य सरकारों द्वारा की गई है। राजस्थान सरकार ने 'प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान' नाम से जोधपुर, जयपुर, बीकानेर, बूंदी, बाँसवाड़ा, सिरोही, सीकर, अलवर, अजमेर, कोटा, झालावाड़, उदयपुर, भरतपुर, टोंक आदि स्थानों पर अपने प्रतिष्ठान खोल रखे हैं। संस्थागत संग्रहालय भी अनेक हैं। श्रीमहावीरजी में दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र में एक 'पाण्डुलिपि संग्रहालय' स्थित है। बीकानेर, उदयपुर, जयपुर आदि स्थानों पर अनेक व्यक्तिगत पाण्डुलिपि पुस्तकालय भी देखे जा सकते हैं। राजस्थान में अनेक श्वेताम्बर हस्तलिखित 'ज्ञान-भण्डार' पाये जाते हैं। अकेले बीकानेर में ही विविध ज्ञान-भण्डारों में एक लाख हस्तलिखित ग्रंथ संगृहीत हैं । इनमें कुछ संस्थाओं का नाम यहाँ लिया जा सकता है। श्री अभय जैन ग्रंथालय, अनूप संस्कृत लाइब्रेरी, गोविन्द पुस्तकालय, सेठिया जैन लाइब्रेरी, क्षमाकल्याणजी का ज्ञान भण्डार, हेमचन्द्रसूरि पुस्तकालय, कुशलचन्द गणि पुस्तकालय, पन्नीबाई के उपाश्रय का ज्ञान-भण्डार, छतिबाई उपासरा ज्ञान भण्डार, कोचरों के उपाश्रय का ज्ञान भण्डार, जेठीबाई ज्ञान-भण्डार आदि। बीकानेर के अतिरिक्त जोधपुर में राजस्थान प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान, राजस्थानी शोध संस्थान, चौपासनी, महाराजा पुस्तक-प्रकाश आदि ज्ञान-भण्डार हैं । जयपुर में महाराजा की लाइब्रेरी, दिगम्बर जैन मन्दिरों के शास्त्र भण्डार, लाल भवन (चौड़ा रास्ता) का विनयचन्द्र जैन ज्ञान-भण्डार, खरतरगच्छ उपाश्रय का ज्ञान भण्डार आदि प्रमुख हैं। राजस्थान के ही सरदारशहर, चूरू, सुजानगढ़, रतनगढ़, बीदासर, लाडनूं, पाली, बालोतरा, बाड़मेर, ओसियां, फलौदी, मेड़ता, सिरोही, कोटा, जैसलमेर, फतेहपुर, किशनगढ़, आहोर, पीपाड़, अलवर, बूंदी, आवां, टोडारायसिंह, उदयपुर, बसवा, डूंगरपुर, करौली, नरायणा, खंडार, महावीरजी, अलीगढ़ (टोंक) आदि नगरों में अनेक पाण्डुलिपि संग्रहालय स्थित हैं।
1. परिषद् पत्रिका, वर्ष 18, अंक 3, अक्टूबर 1978, पृ. 128, श्री अगरचंद नाहटा का
लेख - राजस्थान के श्वेताम्बर हस्तलिखित 'ज्ञान-भण्डार'।
सामान्य पाण्डुलिपिविज्ञान
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