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कपूर की गोलियाँ डालने की परम्परा थी। कुल मिलाकर पुस्तक को दोनों ओर से दबाकर पुट्ठों को पार्श्व में रखकर खूब कसकर बाँधकर रखना चाहिए ताकि कसारी आदि कीट उनमें नहीं घुस सकें । इसके अलावा पुस्तक को मूर्ख-हाथों से भी बचाना परमावश्यक है। 'सुभाषित रत्नभाण्डागारम्' में पुस्तक के विषय में कहा गया है -
"तैलाद् रक्षेजलाद् रक्षेद् रक्षेद् शिथिलबन्धनात्।
मूर्ख हस्ते न दातव्यं युवतीवच्च पुस्तकम्॥' पुस्तक की तेल, जल और शिथिल बन्धन से रक्षा करनी चाहिए। साथ ही किसी युवती की तरह पुस्तक को मूर्ख के हाथ नहीं देना चाहिए। भाव स्पष्ट है।
इनके अलावा बाह्य प्राकृतिक वातावरण एवं जलवायु से भी ग्रंथों की रक्षा की जानी चाहिए। नमी एवं गर्मी से विशेष रूप से ग्रंथों को बचाने के प्रयास किये जाने चाहिए। इस संबंध में डॉ. सत्येन्द्रजी ने एक तालिका प्रस्तुत की है, जिसमें यह दर्शाने का प्रयास किया गया है कि पाण्डुलिपियों पर किसका, कैसा और क्या प्रभाव पड़ता है।
वस्तु कागज, चमड़ा, पुट्ठा
प्रभाव तड़कने या सूखने लगता है। सीलन से सिकुड़ जाता है। लोच पर प्रभाव पड़ता है।
कागज
कागज, चमड़ा, पुट्ठा
जलवायु 1. गर्म और शुष्क 2. अधिक नमी 3. तापमान में अत्यधिक
विविधता 4. तापमान 32° से. एवं
नमी 70% 5. वातावरण में अम्ल
गैसों की उपस्थिति 6. धूलकण
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कीड़े, मकोड़े, कंसारी, काकरोच, दीमक एवं फफूंद पैदा हो जाती है। बुरा प्रभाव पड़ नष्ट हो जाती हैं।
कागज आदि
कागज, चमड़ा, पुट्ठा इससे अम्ल गैसों की घनता आती आदि
है और फफूंद पनपती है। कागज आदि कागज और स्याही के रंग फीके
हो जाते हैं।
7. सीधी धूप
पाण्डुलिपि-संरक्षण ( रख रखाव)
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