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(च) अलंकरण निर्भर विकृति युक्त : लेखन में कलात्मकता दिखाने के लिए अलंकरण निर्भर विकृति युक्त शब्दों का प्रयोग देखने को मिलता है । अलंकरण की इस प्रवृत्ति के कारण एक ही अक्षर को लेखक विभिन्न कलात्मक रूपों में लिखता है जिसके कारण अक्षर रूपों के साथ शब्द रूप भी बदल जाते हैं । देवनागरी लिपि में ' अलंकरण' की प्रवृत्ति ई. पू. प्रथम शती से ही दिखाई देती है। इस संबंध में डॉ. अहमद हसन दानी ने 'इण्डियन पेलियोग्राफी' में इस पर काफी विस्तार से लिखा है । डॉ. सत्येन्द्र ने उनके 'अलंकृत वर्णमाला' का एक चित्र भी उद्धत किया है । अत: अलंकरण के प्रभाव को समझकर ही 'शब्दरूप' का निर्णय करना उचित रहेगा।
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3. नवरूपाक्षर युक्त शब्द : जब लिपिकार प्रचलित अक्षर - रूप के अतिरिक्त कोई नया एवं अनोखा रूप लिखता है, तब इस नवरूपाक्षर युक्त शब्दविकृति की अधिक गुंजाइश रहती है ।
4. लुप्ताक्षरी शब्द : ध्वनियों की तरह अक्षर - विकृति में लोप, आगम और विपर्यय की स्थिति देखी जा सकती है । पाण्डुलिपियों में ऐसे शब्द देखने को मिलते हैं, जिनके कोई-कोई अक्षर भ्रमवश या त्वरावश छूट जाते हैं। ऐसे शब्दों का अर्थ प्रसंग के अनुसार शब्द को समझकर लुप्ताक्षर की पूर्ति करके ही समझा जा सकता है । विद्यापति की कीर्तिलता में 'बादशाह जे वीराहिम साही' लिखा है । इसमें 'इवराहिम शाह' का ही 'विराहिम शाह' हो गया है । इसी प्रकार संदेशरासक में 'संझासिय' में 'सज्झसिय' का 'ज' लुप्त है I
5. आगमाक्षरी : लिपिकर्ता की भूल से पाण्डुलिपि में शब्दों में एक-दो अक्षरों का आगम भी हो जाता है, जिससे शब्द रूप का अर्थ समझने में कठिनाई होती है ।
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6. विपर्याक्षरी शब्द : मात्रा की तरह वर्ण-विपर्यय भी होता है। इसमें असावधानीवश आगे का अक्षर पीछे या पीछे का अक्षर आगे लिखा जाता है ।
7. संकेताक्षरी शब्द : पाण्डुलिपि में संकेताक्षरी शब्दों का प्रयोग भी मिलता है । लम्बे या बड़े शब्दों को जब उसके छोटे अंश के द्वारा दर्शाया जाता है तो
1. पाण्डुलिपिविज्ञान, पृ. 323
शब्द और अर्थ : एक समस्या
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