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(ग) विभक्त - अक्षर विकृत शब्द : ऐसे शब्द जिन्हें तोड़कर तद्भव रूप बनाकर पढ़ा जाये वे इसी कोटि में आते हैं। जैसे कर्म को विभक्त करके 'करम', ऊर्ध्व को 'ऊरध' आत्म को आतम, अध्यात्म को अध्यातम आदि ।
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(घ) युक्ताक्षर - विकृति युक्त : इस संबंध में डॉ. सत्येन्द्रजी ने विस्तार से लिखा है । उनके अनुसार जब शब्द परस्पर विभक्त न होकर मुक्त हो और तब उनमें से किसी में भी यदि विकार आ जाता है तो उसे युक्ताक्षर - विकृति युक्त शब्द कहेंगे। जैसे - महाजन्हि को महजन्हि, ऊलंबी को उक्कंबी और उद्धरज्यो जी को उद्धरज्य जी, शांडिल्य को सांडिल्ल पढ़ा जाये वहाँ यह विकृति ही है ।
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(ङ) घसीटाक्षर विकृति युक्त शब्द : त्वरावश लिखी जानेवाली पाण्डुलिपि घसीटाक्षरों में लिखी जाती है। घसीट में लिखी जानेवाली पाण्डुलिपियों में विकृति आना भी स्वाभाविक है। प्राचीन राज-काज के पत्रादि घसीट-अक्षरों में लिखे जाने की एक परम्परा-सी थी, जिसे समझने के लिए निरन्तर अभ्यास की आवश्यकता होती थी । प्रायः विशेष- विशेष लेखकों के घसीट में लिखे लेख को पढ़ने का भी अभ्यास करवाया जाता था । घसीटाक्षरों में लिखी पाण्डुलिपि को नहीं समझने के कारण इस प्रकार की विकृतियुक्त शब्दों के कारण अर्थ को समझने में बहुत कठिनाई होती थी ।
1. पाण्डुलिपिविज्ञान, पृ. 320
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सामान्य पाण्डुलिपिविज्ञान
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