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(5) जमादि उस अब्बल, (6) जमादि उल आखिर या जमादि उस्सानी, (7) रजब, (8) शाबान, (9) रमज़ान, (10) शब्बाल, (11) जिष्काद और (12) जिलहिण्ण। यह चन्द्र वर्ष है।। __7.शाहूर सन्, सूर सन् या अरबी सन (मृगसाल): इस सन् का प्रारम्भ 15 मई, 1344 ई. या ज्येष्ठ शुक्ल 2, 1401 विक्रमी से हुआ है, जबकि सूर्य मृगशिर नक्षत्र पर आया था, 1 मुहर्रम हिजरी सन् 745 से हुआ था। इसके महीनों के नाम हिजरी सन् के महीनों के नाम पर ही हैं । लेकिन यह चन्द्र वर्ष न होकर सौर वर्ष है। 'मृगे रवि' अर्थात् जब सूर्य मृगशिर नक्षत्र पर आता है उसी दिन से यह नया वर्ष प्रारंभ होता है । इसलिए कभी-कभी इसे 'मृग-साल' भी कहा जाता है। इस सन् में 599-600 मिलाने से ईसवी सन् तथा 656-657 जोड़ने से विक्रम संवत् प्राप्त होता है। इस सन् के वर्ष अंकों की बजाय अंक द्योतक अरबी शब्दों में अंकित किये जाते हैं।
8. फसली सन् : 'रबी' और 'खरीफ' की फसलों का हासिल निश्चित महीनों में वसूलने के लिए बादशाह अकबर ने इसे हिजरी सन् 971 में प्रारंभ किया था। इस समय वि.सं. 1620 एवं सन् 1563 ई. चल रहा था।
इनके अतिरिक्त और भी अनेक सन्/संवत् भारत में प्रचलित रहे हैं। जैसे - लक्ष्मणसेन संवत् विलायती सन, अमली सन्, बंगाली सन् या बंगलाक, इलाही सन्, कलचूरी संवत्, भाटिक संवत्, कोल्लम या परशुराम संवत्, नेणार (नेपाल) संवत् आदि। एक पाण्डुलिपि अनुसंधानकर्ता को सन्/संवतों की यह संक्षिप्त जानकारी अति आवश्यक है। 5. कालगणना में आनेवाली अड़चनें
हमारे देश के काल गणना के आधार पर सीधे-सरल न होकर अत्यन्त जटिल हैं । जिसके कारण कालगणना में अनेक प्रकार की अड़चनें आती हैं। जैसे - यह जानना बहुत कठिन है कि वह संवत् चैत्रादि, आषाढ़ादि, श्रावणारि या कार्तिकादि है या अन्य। इसके बाद वह पूर्णिमान्त है या अमान्त। ये वर्ष कभी वर्तमान रूप में, कभी गत, विगत या अतीत रूप में लिखे जाते हैं। सबसे अधिक कठिनाई तो तब होती है जब तिथि लिखते समय लेखक से गणना में भूल हो जाती है। हो सकता है लेखक को बोलने वाले का गणित-ज्ञान ही कमजोर हो।
काल-निर्णय
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