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होता है। 81 जोड़ने से चैत्रादि विक्रम (गत), 25 जोड़ने से कलियुग (गत) तथा 24 या 25 जोड़ने से ईसवी सन् मिलता है। हमें प्राप्त एक पाण्डुलिपि में उक्त सप्तर्षि संवत् का उल्लेख भाषा योगवाशिष्ठ' (पाण्डुलिपि) की पुष्पिका से इस प्रकार प्राप्त हुआ है -
"इति श्री सर्व विद्या निधान कवीन्द्राचार्य सरस्वती विरचितं भाषा योगवाशिष्ठ सारे ज्ञान सारा पर नाम्नि तत्त्व निरूपणं नाम दशमं प्रकरणं ॥ 10॥ समाप्तोयं ग्रंथः ॥ संवत् ॥ 39 ॥ कश्मीर मध्ये। शिवराम लिखितं महादेव गिर। पठनार्थे । शुभं भवतु ॥ निरंजनी॥
2. कलियुग-संवत् : इसे भारत-युद्ध संवत् या युधिष्ठिर संवत् भी कहते हैं। इसका प्रारंभ ई.पू. 3102 से माना जाता है । ईसवी सन् में 3101 जोड़ने से गत कलियुग संवत् निकल आता है।
3. बुद्ध-निर्वाण-संवत् : यह 487 ई.पू. से प्रारंभ माना जाता है।
4. बार्हस्पत्य-संवत्सर : यह दो प्रकार का होता है - (1) बारह वर्ष का, (2) साठ वर्ष का।
5. ग्रह परिवृत्ति-संवत्सर : यह 'चक्र अस्तित' संवत् है। एक चक्र 90 वर्ष में पूरा होकर पुन: 1 से प्रारंभ हो जाता है । इसमें शताब्दी की संख्या नहीं दी जाती। इसका प्रारंभ ई.पू. 24 से माना जाता है।
6. हिजरी सन् : पैगम्बर मुहम्मद साहब ने जिस दिन मक्का को छोड़ा था, उस छोड़ने को अरबी भाषा में 'हिजरइ' कहते हैं । इसकी स्मृति में प्रचलित सन् को हिजरी सन् कहा जाता है। यह 15 जुलाई 622 ई. तथा संवत् 679 श्रावण शुक्ल 2 विक्रमी की शाम से माना जाता है । इस सन् की प्रत्येक तारीख सायंकाल से प्रारम्भ होकर दूसरे दिन सायंकाल तक रहती है । 'चन्द्र दर्शन' से महीने का प्रारम्भ माना जाता है । इसके 12 महीनों के नाम इस प्रकार हैं - (1) मुहर्रम, (2) सफर, (3) रबीउल अब्बल, (4) रबीउल आखिर या रबी उस्सानी,
1. पाण्डुलिपियों की खोज (लेख) : डॉ. महावीर प्रसाद शर्मा, परिषद् पत्रिका, पटना,
जन. 1981, पृ. 78 2. विशेष जानकारी के लिए पाण्डुलिपिविज्ञान : डॉ. सत्येन्द्र, पृ. 263 पर देखिए।
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सामान्य पाण्डुलिपिविज्ञान
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