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छूट : कभी-कभी प्रमादवश प्रतिलिपिकार कोई पंक्ति, शब्द या अक्षर छोड़ देता है। ऐसी छूटों की पाठालोचन के द्वारा प्रामाणिक मूलपाठ की प्रतिष्ठा कर पूर्ति करनी होती है। ___अप्रामाणिक रचनाएँ : कभी-कभी शिष्यों या श्रद्धालुओं द्वारा लिखित पूरी की पूरी कृति ही अप्रामाणिक होती है; क्योंकि ग्रंथ का रचनाकार वह स्वयं नहीं होता है, जिसे बताया जाता है । पाठालोचन के द्वारा ही ऐसी रचनाओं की छंटनी की जाती है। इस प्रकार पाठालोचन अथवा पाठानुसंधान एक महत्वपूर्ण अनुसंधान है। 5. पाठालोचन : शब्द-अर्थ का महत्व ___ पाठालोचन केवल भाषाविज्ञान का ही विषय नहीं है, अपितु उसका साहित्यिक महत्त्व भी है। इसलिए इसका संबंध शब्द और अर्थ दोनों से हैं। इस दृष्टि से सम्पादन की दो सारणियों का उपयोग हो रहा है - (1) वैज्ञानिक सम्पादन, और (2) साहित्यिक सम्पादन । वैज्ञानिक एवं साहित्यिक प्रक्रिया में मूलत: अन्तर न होते हुए भी आज का वैज्ञानिक सम्पादन शब्द को अधिक महत्व देता है और साहित्यिक सम्पादक अर्थ को। इसमें संदेह नहीं कि शब्द और अर्थ की सत्ता परस्पर असंपृक्त नहीं है फिर भी अर्थ को मूलतः ग्रहण किये बिना प्राचीन हिन्दी काव्यों का सम्पादन सर्वथा निर्धान्त नहीं। इन्हीं सब कारणों से शब्द की तुलना में अर्थ की महत्ता स्वीकार करनी पड़ती है। आज अधिकतर पाठ-सम्पादन में जो भ्रांतियाँ उत्पन्न होती हैं, वे अर्थ न समझने के कारण। अतः आवश्यकता इस बात की है कि वैज्ञानिक प्रणाली से ठीक या यथार्थ शब्द पर पहुँचा जाए, क्योंकि शुद्ध शब्द ही ठीक अर्थ दे सकता है। इस प्रकार पाठालोचन की वैज्ञानिक प्रणाली में शब्दों का महत्व स्वयंसिद्ध है। 6. पाठालोचन की प्रणालियाँ ।
पाठालोचन की तीन प्रणालियाँ हैं - (1) स्वेच्छया-पाठ-निर्धारण प्रणाली, (2) तुलनात्मक प्रणाली, (3) वैज्ञानिक प्रणाली। प्रथम प्रकार की एक सामान्य प्रणाली होती है, जिसमें सम्पादक, पुस्तक का सम्पादन करते समय प्राप्त प्रति पर
1. सम्मेलनपत्रिका (चैत्र-भाद्रपद, अंक 1892) पृ. 177, डॉ. किशोरीलाल का लेख -
प्राचीन हिन्दी काव्य : पाठ एवं अर्थ विवेचन।
पाठालोचन
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