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(पं. उदय शंकर शास्त्री का चार्ट)
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पाण्डुलिपिविज्ञान : डॉ. सत्येन्द्र से साभार
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एक बात और है। मद्रास प्रान्त (तमिलनाडु) के कृष्णा जिले से प्राप्त भट्टिप्रोलु के स्तूप के लेखों की लिपि विप्रावा, बड़ली एवं अशोक की लिपियों से भिन्न है। लगता है यह दक्षिण की लिपि किसी पूर्ववर्ती ब्राह्मीलिपि के परकालीन रूप से निकली द्राविड़ लिपि है, जिसका उल्लेख 'ललितविस्तर" नामक ग्रंथ में भी हुआ है। इसलिए ई.पू. 500 से ई. 350 तक के लेखों को ब्राह्मीलिपि के नाम से संबोधित किया जाता है। 1. मूल ललितविस्तार' ग्रंथ संस्कृत में है। इसमें भगवान बुद्ध का चरित्र वर्णित है । इसके
रचनाकाल का ठीक-ठीक पता नहीं चलता, परन्तु चीनी भाषा में अनुवाद 308 ई. में हआ था। डॉ. राजवली पाण्डेय ने 'इण्डियन पेलियोग्राफी', पृ. 26 पर बताया है कि यह कृति अपने चीनी अनुवाद से कम से कम एक या दो शताब्दी पूर्व की तो होनी ही चाहिए। पाण्डुलिपिविज्ञान, डॉ. सत्येन्द्र, फुटनोट, पृ. 200
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सामान्य पाण्डुलिपिविज्ञान
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