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चित्र - आदि मानव ने पहले चित्र बनाए । ये चित्र उसने गुफाओं में बनाए । इन चित्रों को बनाते समय यह भाव विकसित हुआ कि वह इनसे किसी बात को सुरक्षित रख सकता है। इस प्रकार ये चित्र 'लिपि' का काम देने लगे। यह लिपि 'बिम्बलिपि' थी। और यह चित्रलिपि की आधार भूमि मानी जा सकती है। अत: लेखन और लिपि के लिए प्रथम चरण है बिम्ब अंकन और दूसरा चरण है उससे संप्रेषण का काम लेना। इसे हम - 2. बिम्बलिपि का नाम दे सकते
इस चित्र से स्पष्ट है कि स्वस्तिक पूजा और छत्र-अर्पण के पूरे शान्तिमय भाव को प्रेषित करने के लिए, पूजा-भाव में पशुओं के आदर के समावेश की कथा को और पूजा-विधान को हृदयंगम कराने के लिए चित्र-लेखक इस चित्र के द्वारा बिम्बों से संप्रेषित करना चाहता है। अत: यह लिपि का काम कर उठा है। यह लिपि ध्वनियों की नहीं, बिम्बों की है। छत्रधारी मनुष्य कितने ही हैं, अत: वे लघु आकृतियों में हैं। 'बिम्ब' धीरे-धीरे रेखाकारों के रूप में परिवर्तित हो उठता है । तब हम इसे 3. रेखाकार चित्रलिपि कह सकते हैं।
सहनर्तन, जम्बूद्वीप (पचमढ़ी)
आरोही नर्तक, कुप्पगल्लु (बेलारी, रायचूर, द. भा.)
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सामान्य पाण्डुलिपिविज्ञान
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