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(ग) मुहर - मुद्राएँ: मोहनजोदड़ो और नालंदा की पुरातात्विक खुदाई में ऐसी अनेक मुद्राएँ प्राप्त हुई हैं, जिन पर लेख अंकित थे।
(घ) घट : पुरातात्विक खुदाई में प्राप्त प्राचीन मृद्भाण्डों या घड़ों के ऊपर अथवा उनके ढक्कनों पर भी लेख उत्कीर्ण हुए प्राप्त होते हैं ।
3. सीप-दांतिकी : सीप, शंख, हाथीदाँत आदि की बनी मुद्राओं एवं लकड़ी की लाट या स्तम्भों पर भी प्राचीन लेख अंकित प्राप्त हुए हैं, जैसे किरारी से प्राप्त काष्ठ-स्तम्भ एवं भज की गुफा की छतों की काष्ठ महराबों पर लेख अंकित मिले हैं ।
4. ताम्रपत्रीय : भारत में उत्कीर्ण लेखों की दृष्टि से समस्त धातुओं में ताम्र धातु के पत्रों का सर्वाधिक प्रयोग हुआ है । अनेक प्राचीन उल्लेखों से यह बात सिद्ध होती है । ताम्रपत्रों पर कई प्रकार के लेख मिलते हैं । इनका विवरण निम्न प्रकार से दिया जा सकता है।
पत्ररूप में
ग्रंथ शासन प्रशस्ति
ताम्र वस्तु
मूर्तिरूप में
यंत्र
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ताम्रपत्र पर ग्रंथ अंकित कराने का उल्लेख ह्वेनसांग ने भी किया है। उन्होंने बताया है कि कनिष्क ने बौद्ध धर्म-ग्रंथ ताम्रपत्रों पर अंकित कराये थे । इसी प्रकार तिरुपति में स्थित तेलुगु में रचित 'ताल्लया कमवरी' भी ताम्रपत्रों पर ही लिखी गई है।
अन्यरूपों में
(जैसे चमचे पर
( तक्षशिला) दीपक पर
(जमालगढ़) कड़ाही आदि पर
प्राचीन राज्यादेश भी प्रायः ताम्रपत्र पर ही किये जाते थे । इस प्रकार के अकबर और शाहजहाँकालीन ताम्रपत्र हमने खूब देखे हैं। नारायणपुर (अलवर) के राजा बलभद्र शेखावत झज्जर से लेकर टोंक प्रान्त तक के शाही सूबेदार एवं दीवान थे । 7 फरवरी सन् 1628 ई. को बादशाह शाहजहाँ ने उन्हें हजारी जात
पाण्डुलिपि: प्रकार
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