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________________ पाठ - 10. मेरुप्रभ हाथी (ज्ञाताधर्म कथा) (मेघकुमार का पूर्व भव) तत्पश्चात् हे मेघ ! वनचरों ने तुम्हारा नाम मेरुप्रभ रखा। तुम चार दाँतोंवाले हस्तिरत्न हुए। तब एक बार कभी ग्रीष्मकाल के अवसर पर ज्येष्ठ मास में, वन के दावानल की ज्वालाओं से वन-प्रदेश जलने लगे। दिशाएँ धूम से व्याप्त हो गई। उस समय तुम बवण्डर की तरह इधर-उधर भागदौड़ करने लगे। भयभीत हुए, व्याकुल हुए और बहुत डर गए। तब बहुत से हाथियों यावत् हथिनियों आदि के साथ, उनसे परिवृत होकर, चारों ओर एक दिशा से दूसरी दिशा में भागे। तत्पश्चात् हे मेघ! तुमने एक बार कभी प्रथम वर्षाकाल में खूब वर्षा होने पर गंगा महानदी के समीप बहुत-से हाथियों यावत् हथिनियों से अर्थात् सात सौ हाथियों से परिवृत होकर एक योजन परिमित बड़े घेरेवाला विशाल मण्डल बनाया। हे मेघ ! किसी अन्य समय पाँच ऋतुएँ व्यतीत हो जाने पर ग्रीष्मकाल के अवसर पर, ज्येष्ठ मास में, वृक्षों की परस्पर की रगड़ से उत्पन्न हुए दावानल के कारण यावत् अग्नि फैल गई और मृग, पशु, पक्षी तथा सरीसृप आदि भागदौड़ करने लगे। तब तुम बहुत-से हाथियों आदि के साथ जहाँ वह मण्डल था, वहाँ जाने के लिए दौड़े। . तत्पश्चात् हे मेघ ! तुमने 'पैर से शरीर खुजाऊँ' ऐसा सोचकर एक पैर ऊपर उठाया। इसी समय उस खाली हुई जगह में, अन्य बलवान् प्राणियों द्वारा प्रेरित-धकियाया हुआ एक शशक प्रविष्ट हो गया। तब हे मेघ ! तुमने पैर खुजाकर सोचा कि मैं पैर नीचे रखू, परन्तु शशक को पैर की जगह में घुसा हुआ देखा। देखकर द्वीन्द्रियादि प्राणों की अनुकम्पा से, वनस्पति रूप भूतों की अनुकम्पा से, पंचेन्द्रिय जीवों की अनुकम्पा से तथा वनस्पति के सिवाय शेष चार स्थावर सत्त्वों की अनुकम्पा से वह पैर अधर ही उठाए रखा, नीचे नहीं रखा। हे मेघ ! तब उस प्राणानुकम्पा यावत् (भूतानुकम्पा, जीवानुकम्पा तथा) सत्त्वानुकम्पा से तुमने संसार परीत किया और मनुष्यायु का बन्ध किया। तत्पश्चात् वह दावानल अढ़ाई अहोरात्र पर्यन्त उस वन को जलाकर पूर्ण हो गया, उपरत हो गया, उपशान्त हो गया और बुझ गया। प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ भाग - 2 63 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002692
Book TitlePrakrit Gadya Padya Saurabh Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2005
Total Pages192
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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