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तब राजगृह नगर में बहुत से लोग आपस में इस प्रकार कहकर प्रशंसा करने लगे- 'देवानुप्रियो ! धन्य सार्थवाह धन्य है, जिसकी पुत्रवधु रोहिणी है, जिसने पाँच शालि के दाने छकड़ा-छकड़ियों में भरकर लौटाये।
तत्पश्चात् धन्य सार्थवाह उन पाँच शालि के दानों को छकड़ा-छकड़ियों द्वारा लौटाये देखता है। देखकर हृष्ट और तुष्ट होकर उन्हें स्वीकार करता है। रोहिणी पुत्रवधु को उस कुलगृहवर्ग (परिवार) के अनेक कार्यों में सर्वेसर्वा नियुक्त किया।
प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ भाग - 2
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