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पाठ -9 रोहिणी के उदाहरण में (वर्णित शिक्षा) राजगृह नगर में धन्य नामक सार्थवाह निवास करता था उस धन्य सार्थवाह की भद्रा नामक भार्या थी।
उस धन्य सार्थवाह के पुत्र और भद्रा भार्या के आत्मज (उदरजात) चार सार्थवाह पुत्र थे। उनके नाम इस प्रकार थे- धनपाल, धनदेव, धनगोप, धनरक्षित।
उस धन्य सार्थवाह के चार पुत्रों की चार भार्याएँ - सार्थवाह की पुत्रवधुएँ थीं। उनके नाम इस प्रकार हैं - उज्झिका, भोगवती, रक्षिका और रोहिणी। __जेठी कुलवधु उज्झिका को बुलाया। बुलाकर इस प्रकार कहा -
'हे पुत्री ! तुम मेरे हाथ से यह पाँच चावल के दाने लो। हे पुत्री ! जब मैं तुम से यह पाँच चावल के दाने माँगूं, तब तुम यही पाँच चावल के दाने मुझे वापिस लौटाना।
इसी प्रकार दूसरी पुत्रवधु भोगवती को भी बुलाकर पाँच दाने दिये। उसने वह दाने छीले और छीलकर निगल गईं। निगल कर अपने काम में लग गई।
इसी प्रकार तीसरी रक्षिका के सम्बन्ध में जानना चाहिए। विचार करके (उसने) वे चावल के पाँच दाने शुद्ध वस्त्र में बाँधे। बाँध कर रत्नों की डिबिया में रख लिए। रखकर सिरहाने के नीचे स्थापित किए। स्थापित करके प्रातः मध्याह्न और सायंकाल – इन तीनों संध्याओं के समय उनकी सार-सम्भाल करती हुई रहने लगी।
- चौथी पुत्रवधु रोहिणी को बुलाया। बुलाकर उसे भी वैसा ही कहकर पाँच दांने दिये। (उसने) विचार करके अपने कुलगृह (मैके-परिवार) के पुरुषों को बुलाया और बुलाकर इस प्रकार कहा -
- देवानुप्रियो! तुम पाँच शालि अक्षतों को ग्रहण करो। ग्रहण करके पहली वर्षा . ऋतु में पाँच दाने बो देना। इनकी रक्षा और संगोपना करते हुए अनुक्रम से इन्हें बढ़ाना।
। तत्पश्चात् संरक्षित, संगोपित और संवर्धित किए जाते हुए वे शालि-अक्षत अनुक्रम से शालि (के पौधे) हो गये।
तत्पश्चात् कौटुम्बिक पुरुषों ने उन प्रस्थ-प्रमाण शालिअक्षतों को नवीन घड़ों में भरा।
प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ भाग - 2
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