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जिससे रागभाव से विरक्ति, जिससे आत्मकल्याण में अनुरक्ति और जिससे सर्व जीवों में मैत्रीभाव प्रभावित हो, जिनशासन में वही ज्ञान कहलाता है ।
क्षमा से क्रोध को, मार्दव से मान को, आर्जव से माथा को और सन्तोष से लोभ को - इस प्रकार चारों कषायों को जीतो ।
जैसे आग ईंधन से और लवणसुमद्र हजारों नदियों से तृप्त नहीं होता, वैसे ही तीनों लोकों की प्राप्ति हो जाने पर भी जीव की तृप्ति नहीं होती।
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प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ भाग - 2
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